May 6, 2024

ऑक्सीजन लेवल कैसे बढ़ाये, किसी भी संक्रमण से कैसे बचें और हम कैसे रहे निरोगी जीवन में सकारात्मकता कैसे लाये

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केन्द्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक एवं योग गुरु महेश अग्रवाल द्वारा कई वर्षो से योग अभ्यास के निशुल्क प्रशिक्षण से हजारों लोगों के जीवन में परिवर्तन लाने का प्रयास सार्थक हो रहा है आज कोविड 19 महामारी एवं विपरीत परिस्थितियों में भी सभी अभ्यासी अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाये रखते हुए जीवन के प्रति सकारात्मक है और सेवा कार्यों के लिए तत्पर है, योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि हम सब अपनी श्वास के प्रति लापरवाह होते जा रहे थे उसी का परिणाम हमारे प्राण यानी शरीर को चलाने वाली शक्ति कमजोर होती चली गई, प्राण से ही सबकुछ है और यही प्राण योग से प्रदीप्त होता है, प्राण के लिए श्वास को संतुलित तरह से लेकर प्राणायाम किया जाता है|

भस्त्रिका सबसे महत्त्वपूर्ण प्राणायाम है। यद्यपि जिनके हृदय या फेफड़े कमजोर हैं या जो बीमार हैं उन्हें इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति सामान्य रूप से स्वस्थ है, उन्हें इसका नियमित अभ्यास करना चाहिए। भस्त्रिका प्राणायाम में यह महत्त्वपूर्ण है कि श्वास लेने और छोड़ने में एक समान बल का प्रयोग हो। दूसरा, नासिका की दीवारों पर अनावश्यक दबाव न डालें। धौंकनी की भाँति सामान्य क्रिया होनी चाहिए।भस्त्रिका प्राणायाम कुछ महीनों के सही अभ्यास के पश्चात् यह महिलाओं के लिए श्रम दौरान किया जा सकने वाला एक उपयोगी अभ्यास है। भस्त्रिका फेफड़ों में कार्बन डायऑक्साइड के स्तर को घटाता है। यह दमा के रोगियों तथा फेफड़े के अन्य रोगों से पीड़ित व्यक्तियों के लिए अत्युत्तम अभ्यास है। यह गले की सूजन तथा गले में जमा कफ को दूर करता है। यह तन्त्रिका तन्त्र को सन्तुलित एवं सशक्त बनाता है, जिससे शान्ति एवं मानसिक एकाग्रता का अनुभव होता है, यह ध्यान के अभ्यास के लिए तैयार करता है। एकाग्रता श्वास पर, उदर की गति पर, मणिपुर चक्र पर । 20 बार तेज गति से पूरक- रेचक, फिर कुम्भक और अन्त में रेचक से भस्त्रिका प्राणायाम का एक चक्र पूरा होता है। इसका एक बार में 5 चक्र तक अभ्यास किया जा सकता है। प्रत्येक चक्र के पश्चात् कुछ क्षण विश्राम करें। इस प्राणायाम को प्रातःकाल और सन्ध्या में किया जा सकता है। इस प्राणायाम के अभ्यास से शरीर को अधिक मात्रा में ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है तथा अधिक कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकलती है। रक्त शुद्ध होता है और तेजी से तथा अधिक मात्रा में सम्पूर्ण शरीर में संचालित होता है। इससे कमजोर फेफड़ों को स्वास्थ्य एवं बल प्राप्त होता है। आइए, अब इस अभ्यास को सीखें।

अभ्यास के पहले थोड़ा तेज गति से चलना दौड़ना साइकिल चलाना या जंपीग जैक क्रिया करने के बाद दोनों नासिका छिद्रों से धीरे-धीरे पूर्ण पूरक करें, इसके पश्चात् रेचक । इसमें उदर का लयबद्ध तरीके से विस्तार और संकुचन होना चाहिए। मुँह बन्द रखें।  4-5 बार ऐसा करने के पश्चात्, पूरक तथा रेचक की गति धीरे-धीरे बढ़ाते जायें, जिससे 10-12 बार ऐसा करने के पश्चात् लुहार की धौंकनी की भाँति श्वसन क्रिया होने लगे।बिना रुके पूरक रेचक की इस संयुक्त क्रिया को 20 बार करने के पश्चात् एक लम्बा पूरक करें और अन्तर्कुम्भक लगाएँ। अन्तर्कुम्भक की इस स्थिति में सुविधाजनक अवधि तक रुकें। इसके पश्चात् श्वास बाहर छोड़ें और फेफड़ों को धीरे-धीरे खाली करें। सामान्य श्वसन करते हुए कुछ क्षण विश्राम करें। फिर इस प्राणायाम को दुहरायें।कुम्भक के दौरान आप गिनती कर सकते हैं।
योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि जो भस्त्रिका प्राणायाम का अभ्यास ना कर पा रहे हो वे नाड़ी शोधन प्राणायाम का अभ्यास जरूर करें सिर्फ अपनी आती जाती श्वास के प्रति सजगता,यह सुनिश्चित करता है कि सम्पूर्ण शरीर ऑक्सीजन की अतिरिक्त आपूर्ति से सम्पोषित हो रहा है। कार्बन डायऑक्साइड को कुशलतापूर्वक बाहर निकाल कर, रक्त से विषाक्त तत्त्वों को दूर कर उसे शुद्ध बनाता है। मस्तिष्क केन्द्रों को उद्दीप्त करता है, जिससे वे अपनी अधिकतम क्षमता से कार्य कर सकें। यह शान्ति, वैचारिक स्पष्टता तथा एकाग्रता लाता है। अधिक मानसिक कार्य करने वालों को यह प्राणायाम करने का सुझाव दिया जाता है। यह प्राणशक्ति को बढ़ाता तथा प्राणों में सामंजस्य लाकर तनाव एवं चिन्ता के स्तर को घटाता है। यह प्राण के अवरोधों को दूर कर इडा एवं पिंगला नाड़ियों में सन्तुलन लाता है। जिससे सुषुम्ना प्रवाहित होने लगती है, जो ध्यान की गहन अवस्था में ले जाती है और आध्यात्मिक जाग्रति लाती है। एकाग्रता श्वास एवं गिनती पर, आज्ञा चक्र पर। *यहाँ कुम्भक, पूरक एवं रेचक का मतलब रोकना, लेना, छोड़ना या खाली करना है|

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