May 12, 2024

सांकेतिक भाषाएं पूरी तरह से विकसित प्राकृतिक भाषाएं हैं, हर व्यक्ति को सांकेतिक भाषा से जुड़ना चाहिए है : महेश अग्रवाल

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र  स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि 23 सितंबर को दुनिया भर में हर साल अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस मनाया जाता है। यह दिन सांकेतिक भाषाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने और सांकेतिक भाषाओं की स्थिति को मजबूत करने के लिए मनाया जाता है।  वर्ष 2022 की थीम – ‘सांकेतिक भाषाएं हमें एकजुट करती हैं’ – घोषित की गई है।इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे हम में से प्रत्येक – दुनिया भर में बहरे और सुनने वाले लोग – जीवन के सभी क्षेत्र में सांकेतिक भाषाओं का उपयोग करने के हमारे अधिकार की मान्यता को बढ़ावा देने के लिए हाथ से हाथ मिलाकर काम कर सकते हैं। ये वो भाषा जिसमें कोई स्वर नहीं है। जो लोग सुन या बोल नहीं सकते उनके हाथों, चेहरे और शरीर के हाव-भाव से बातचीत की भाषा को सांकेतिक भाषा  कहा जाता है। इस भाषा को हाथ और आँखों के हाव भाव से बोला जाता है । दूसरी भाषा की तरह सांकेतिक भाषा के भी अपने व्याकरण और नियम हैं। सांकेतिक भाषा बधिर व्यक्तियों के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसे ही मूक-बधिर लोगों की मातृ भाषा भी कहा जा सकता है।  यह दिन बधिर लोगों के साथ-साथ सांकेतिक भाषाओं के अन्य उपयोगकर्ताओं की भाषाई पहचान पर ध्यान देता है। एक अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा भी है जिसका उपयोग बधिर लोगों द्वारा अंतरराष्ट्रीय बैठकों में और यात्रा और सामाजिककरण के दौरान किया जाता है।
योग गुरु अग्रवाल ने बताया  भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर ,  सुनकर, लिखकर व पढ़कर अपने मन के भावों या विचारों का आदान-प्रदान करता है। भाषा के तीन रूप होते है : मौखिक भाषा – भाषा का वह रूप जिसमें एक व्यक्ति बोलकर विचार प्रकट करता है और दूसरा व्यक्ति सुनकर उसे समझता है, मौखिक भाषा कहलाती है। उदाहरण: टेलीफ़ोन, दूरदर्शन, भाषण, वार्तालाप, नाटक, रेडियो आदि। मौखिक या उच्चरित भाषा, भाषा का बोल-चाल का रूप है। उच्चरित भाषा का इतिहास तो मनुष्य के जन्म के साथ जुड़ा हुआ है। मनुष्य ने जब से इस धरती पर जन्म लिया होगा तभी से उसने बोलना प्रारंभ कर दिया होगा इसलिए यह कहा जाता है कि भाषा मूलतः मौखिक है। यह भाषा का प्राचीनतम रूप है। मनुष्य ने पहले बोलना सीखा। इस रूप का प्रयोग व्यापक स्तर पर होता है। लिखित भाषा :-  इस प्रकार भाषा का वह रूप जिसमें एक व्यक्ति अपने विचार या मन के भाव लिखकर प्रकट करता है और दूसरा व्यक्ति पढ़कर उसकी बात समझता है, लिखित भाषा कहलाती है। उदाहरण:पत्र, लेख, पत्रिका, समाचार-पत्र, कहानी, जीवनी, संस्मरण, तार आदि। उच्चारित भाषा की तुलना में लिखित भाषा का रूप बाद का है। मनुष्य को जब यह अनुभव हुआ होगा कि वह अपने मन की बात दूर बैठे व्यक्तियों तक या आगे आने वाली पीढ़ी तक भी पहुँचा दे तो उसे लिखित भाषा की आवश्यकता हुई होगी। अतः मौखिक भाषा को स्थायित्व प्रदान करने हेतु उच्चारितध्वनि प्रतीकों के लिए ‘लिखित-चिह्नों’ का विकास हुआ होगा। इस तरह विभिन्न भाषा-भाषी समुदायों ने अपनी-अपनी भाषिक ध्वनियों के लिए तरह-तरह की आकृति वाले विभिन्न लिखित-चिह्नों का निर्माण किया और इन्हीं लिखित-चिह्नों को ‘वर्ण’ कहा गया। अतः जहाँ मौखिक भाषा की आधारभूत इकाई ध्वनि  है तो वहीं लिखित भाषा की आधारभूत इकाई ‘वर्ण’  हैं।
सांकेतिक भाषा – जिन संकेतो के द्वारा बच्चे या गूँगे अपनी बात दूसरों को समझाते है, वे सब सांकेतिक भाषा कहलाती है।जैसे- चौराहे पर खड़ा यातायात नियंत्रित करता सिपाही, मूक-बधिर व्यक्तियों का वार्तालाप आदि। इसका अध्ययन व्याकरण में नहीं किया जाता।
मातृभाषा-  वह भाषा जिसे बालक अपने परिवार से अपनाता व सीखता है, मातृभाषा कहलाती है। प्रादेशिक भाषा- जब कोई भाषा एक प्रदेश में बोली जाती है तो उसे ‘प्रादेशिक भाषा’ कहते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय भाषा- जब कोई भाषा विश्व के दो या दो से अधिक राष्ट्रों द्वारा बोली जाती है तो वह अन्तर्राष्ट्रीय भाषा बन जाती है। जैसे- अंग्रेजी अन्तर्राष्ट्रीय भाषा है।राजभाषा- वह भाषा जो देश के कार्यालयों व राज-काज में प्रयोग की जाती है, राजभाषा कहलाती है।जैसे- भारत की राजभाषा अंग्रेजी तथा हिंदी दोनों हैं। अमरीका की राजभाषा अंग्रेजी है। मानक भाषा – विद्वानों व शिक्षाविदों द्वारा भाषा में एकरूपता लाने के लिए भाषा के जिस रूप को मान्यता दी जाती है, वह मानक भाषा कहलाती है। भाषा में एक ही वर्ण या शब्द के एक से अधिक रूप प्रचलित हो सकते हैं। ऐसे में उनके किसी एक रूप को विद्वानों द्वारा मान्यता दे दी जाती है; जैसे- गयी – गई (मानक रूप) ठण्ड – ठंड (मानक रूप) हिन्दी भाषा: बहुत सारे विद्वानों का मत है कि हिन्दी भाषा संस्कृत से निष्पन्न है; परन्तु यह बात सत्य नहीं है। हिन्दी की उत्पत्ति अपभ्रंश भाषाओं से हुई है और अपभ्रंश की उत्पत्ति प्राकृत से। प्राकृत भाषा अपने पहले की पुरानी बोलचाल की संस्कृत से निकली है।
दुनिया भर में उपयोग की जाने वाली सांकेतिक भाषाएँ पूर्ण रूप से प्राकृतिक भाषाएँ हैं जो बोली जाने वाली भाषाओं से संरचनात्मक रूप से भिन्न हैं। अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस 2022 दुनिया भर की विभिन्न सांकेतिक भाषाओं के बारे में जागरूकता लाएगा। 300 से अधिक सांकेतिक भाषाएं हैं, जिनमें से प्रत्येक में अद्वितीय प्रतीक हैं। विकलांगता से पीड़ित व्यक्तियों के अधिकारों पर सम्मेलन सांकेतिक भाषा के उपयोग को  और बढ़ावा देता है। वह स्पष्ट करता है, कि सांकेतिक भाषाएं बोली जाने वाली भाषाओं की स्थिति में बराबर होती हैं तथा हम सभी सांकेतिक भाषा सीखने और बधिर समुदाय की भाषाई पहचान को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

One thought on “सांकेतिक भाषाएं पूरी तरह से विकसित प्राकृतिक भाषाएं हैं, हर व्यक्ति को सांकेतिक भाषा से जुड़ना चाहिए है : महेश अग्रवाल

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Previous post पी.एम. मोदी वैश्विक शांति के प्रयासों में सबसे अग्रणी नेता, पुतिन ने भी किया समर्थन : पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल
Next post विद्युत लोको प्रशिक्षण केन्द्र उस्लापुर में तकनीकी संगोष्ठी संपन्न
error: Content is protected !!