हिंदी में भारतीय भाषाओं के समान शब्द-संपदा का हो प्रयोग : प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल
वर्धा. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने हिंदी दिवस (14 सितंबर) पर आयोजित परिसंवाद में कहा कि हिंदी के विकास के लिए भारतीय भाषाओं के समान शब्द-संपदा का प्रयोग करना पडे़गा। हमें उन शब्दों को भी हिंदी में जगह देनी पडे़गी जिसको हमने बड़े करीने से निकाला कि इससे संस्कृत जैसी बोझिल हो जाती है। अगर कोई शब्द समान रूप से संस्कृत, बांग्ला, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम में है तो इसे हिंदी में भी स्थान मिलना चाहिए। वे विश्वविद्यालय में ‘राजभाषा हिंदी और अन्य भारतीय भाषाएं : राष्ट्रभाषा का बहुलतावाद’ विषय पर आयोजित परिसंवाद में अध्यक्षीय वक्तव्य दे रहे थे।
प्रो. शुक्ल ने आगे कहा कि एक राष्ट्र, एक जन के रूप में आसेतु हिमालय, हिंदूकुश से लेकर खासी हिल्स तक सर्वत्र एक रूप में सोच रहा था वह कथाओं, कविताओं और जीवन पद्धति के माध्यम से सोच रहा था इसलिए भारतीय भाषाओं में अधिकतम साझा है। स्थानीय आवश्यकताओं और स्थानिक सघन संघात के कारण से उसमें किंचित परिवर्तन आया है। हम भेद के बजाय यदि समानता की तरफ ध्यान देने की प्रणाली भाषिक अध्ययन में भी निकाल सकें तो इसका रास्ता बन सकता है। कुलपति प्रो. शुक्ल ने कहा कि बहुभाषिकता भारत का वास्तविक यथार्थ है। पिछले 75 वर्षों में भाषाएं सिकुड़ गयी है़ं। भाषायी बहुलता खतरे में है। शब्द लुप्त होते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हिंदी सम्पूर्ण भारत की भाषा के रूप में कैसे विकसित होगी इसको ध्यान में रखकर काम करना आवश्यक है और इसके लिए अन्य भारतीय भाषाओं के शब्दों को हिंदी में शामिल करना चाहिए। भाषिक व्यवहार में एकरूपता आएगी तभी हिंदी आसेतु हिमालय का रूप धारण कर सकेगी।
अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने कहा कि हिंदी को समृद्ध बनाने की दिशा में पारिभाषिक शब्दावली का कार्य गंभीरता से होना चाहिए। अन्य भारतीय भाषाओं के शब्दों का प्रयोग कर हमें उन भाषाओं के साथ स्वस्थ आत्मीय संवाद कायम करते हुए भरोसा पैदा करना चाहिए। हिंदी साहित्य विभाग की अध्यक्ष प्रो. प्रीति सागर का कहना था कि हिंदी ने नए परिवर्तनों का स्वीकार किया है। उन्होंने हिंदी के विकास में भारतेंदु से लेकर पं. मदन मोहन मालवीय के द्वारा किये गये प्रयासों की चर्चा की।
प्रास्ताविकी वक्तव्य में मुख्य राजभाषा अधिकारी एवं जनसंचार विभाग के अध्यक्ष प्रो. कृपाशंकर चौबे ने कहा कि हिंदी भाषा राष्ट्र को राष्ट्र की भाषा में संबोधित करती है। हिंदी और भारतीय भाषाओं का सहकार संबंध रहा है। उन्होंने हिंदी के विकास के संदर्भ में पारस्परिक साझेदारी, संबंध आदि में हिंदीतर भाषियों के योगदान की चर्चा की। उन्होंने कहा कि हिंदी का बाजार तो बन गया है परंतु समाज कैसे बनेगा, इसपर विचार करने की जरूरत है। इस अवसर पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान द्वारा प्राप्त संदेश का वाचन तुलनात्मक साहित्य विभाग के अध्यक्ष डॉ. रामानुज अस्थाना ने किया। कार्यक्रम में स्वागत वक्तव्य कुलसचिव क़ादर नवाज़ ख़ान ने दिया। मंगलाचरण डॉ. वागीश राज शुक्ल ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन भाषा विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. हरीश हुनगुंद ने किया तथा अनुवादक सुश्री आरती गुडधे ने आभार माना। कार्यक्रम का प्रारंभ दीप दीपन एवं कुलगीत से तथा समापन राष्ट्रगान से किया गया। इस अवसर पर अधिष्ठातागण, विभागाध्यक्ष, अध्यापक, कर्मचारी, शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन
हिंदी दिवस पखवाडा के अंतर्गत 16 सितंबर से 29 सितंबर तक शुद्ध लेखन, टंकण प्रतियोगिता, निबंध लेखन, टिप्पण मसौदा लेखन तथा काव्य पाठ का आयोजन किया जा रहा है। इन आयोजनों में सभी शिक्षकों, अधिकारियों और कर्मचारियों को सहभागिता करने की अपील विश्वविद्यालय की ओर से की गयी है।