November 23, 2024

समस्त नैतिक संकल्पनाएँ संवैधानिक नैतिकता की परिधि में आती हैं : न्यायमूर्ति पीके श्रीवास्तव

वर्धा. महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में संविधान दिवस के अवसर पर शनिवार,  26 नवंबर को विधि विभाग द्वारा  ‘भारतीय संविधान:लोकतंत्र एवं संवैधानिक नैतिकता’  विषय पर तरंगाधारित संगोष्ठी में  मुख्‍य अतिथि के रूप में उत्तर प्रदेश विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति पी.के. श्रीवास्तव ने कहा कि सुशासन, सामाजिक- आर्थिक विकास, मूलभूत अधिकारों का संरक्षण और न्याय ये सभी विचार संवैधानिक नैतिकता को सुनिश्चित करती हैं. विधि शासन, अधिकार और उन्नति भी संवैधानिक नैतिकता को दर्शाती है. संविधान में नैतिकता की सभी संकल्पनाएँ संवैधानिक नैतिकता की परिधि में आती है.
उन्होंने संवैधानिक नैतिकता से जुड़े अनेक मामलों का हवाला देते हुए कहा कि न्याय को विवेक और तर्कसंगत बनाना ही संवैधानिक नैतिकता है. निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 में प्रदत्त है. उन्होंने कहा कि संवैधानिक नैतिकता नयी बात नहीं है. मर्यादा और सम्मान का संरक्षण इसके अधीन है. कई बार लिखित पाठ से परे जाकर भी संवैधानिक नैतिकता के उदाहरण मिलते हैं. उन्होंने लैंगिक भेदभाव से जुड़े साबरीमाला प्रकरण का उल्लेख करते हुए इसे नैतिकता से जोड़ा और कहा कि अधिकतम लोगों का लाभ, उनकी बेहतरी और देश की एकता तथा मजबूती के सिद्धांत को अपनाया जाना संवैधानिक नैतिकता को अधिक बल देता है.
संगोष्ठी की अध्‍यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल ने की. उन्होंने कहा कि संविधान की उद्देशिका में स्वतंत्रता, समता और बंधुता का किया गया उल्लेख ही संवैधानिक नैतिकता है. संविधान सभा में भी बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इसका उल्लेख किया है. उन्होंने कहा कि संवैधानिक नैतिकता का प्रश्न नागरिकों के मौलिक कर्तव्य में अभिव्यक्त होता है. संवैधानिक नैतिकता विधि के शासन की स्थापना सुनिश्चित करती है एवं समाज के विभिन्न वर्गों की आकांक्षाओं और आदर्शों को एक साथ लेकर चलने की परिकल्पना करती है।
एक संवैधानिक विचार के रूप में संवैधानिक नैतिकता लोकतांत्रिक संस्थाओं में लोगों के विश्वास को बनाए रखने की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।  संवैधानिक नैतिकता एक ऐसा मूल्य है जो प्रत्येक ज़िम्मेदार नागरिक के अंतर्मन में होना चाहिये। संवैधानिक नैतिकता का पालन करना न केवल न्यायपालिका या राज्य का बल्कि व्यक्तियों का भी कर्तव्य है। संविधान को लेकर डॉ. अंबेडकर के भाषण का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि संविधान कितना ही श्रेष्ठ क्यों न हो उसे चलाने वाले लोग कैसे हैं, इसपर उसकी सफलता मानी जाएगी. संगोष्ठी के संयोजक विश्‍वविद्यालय  के विधि विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. चतुर्भुज नाथ तिवारी ने स्वागत वक्तव्य दिया. उन्होंने कहा कि संविधान दिवस पर इस प्रकार के आयोजन संवैधानिक नैतिकता के साथ- साथ संविधान में निहित कर्तव्यों और अधिकारों का बोध कराते हैं.  कार्यक्रम का संचालन दर्शन एवं संस्कृति विभाग के अध्‍यक्ष डॉ. जयंत उपाध्याय ने किया. गांधी एवं शांति अध्‍ययन विभाग के अध्यक्ष डॉ. मनोज कुमार राय ने धन्‍यवाद ज्ञापित किया. कार्यक्रम का प्रारंभ चंदन कुमार मिश्र द्वारा भारत वंदना और विश्वविद्यालय के कुलगीत की प्रस्तुति से किया गया. इस अवसर पर अध्यापक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में जुड़े थे.

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