May 12, 2024

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के विचारों का पुनर्पाठ जरूरी : प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल

वर्धा. डॉ. बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर की 131 वीं जयंती के अवसर पर महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा मे ‘डॉ. बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर का जीवन और व्‍यक्तित्‍व : एक पुनर्पाठ’  विषय पर आयोजित संगोष्‍ठी की अध्‍यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल ने कहा कि डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर ने संविधान के माध्यम से सर्व जन हिताय सर्व जन सुखाय का संकल्प किया आज के परिप्रेक्ष्य में उसे पूरा करने के लिए उनके विचारों का पुनर्पाठ करने की आवश्यकता है।

विश्वविद्यालय में डाॅ. आंबेडकर की जयंती उत्साह के साथ मनायी गयी।  कार्यक्रम का प्रारंभ समता भवन के प्रांगण मे स्थित डॉ. बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर की प्रतिमा पर माल्‍यार्पण कर किया गया। इसके पश्चात कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल की अध्यक्षता में विश्‍वविद्यालय के कस्‍तूरबा सभागार में सम्मिश्र पद्धति से  आयोजित संगोष्‍ठी में प्रतिकुलपति प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्‍ल, संस्‍कृति विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. लेला कारुण्‍यकरा, हिंदी एवं तुलनात्‍मक साहित्‍य विभाग के प्रो. कृष्‍ण कुमार सिंह, दूर शिक्षा निदेशालय के निदेशक डॉ. के. बालराजू ने संबोधित किया।
अपने सारगर्भित उद्बोधन में कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने डाॅ. आंबेडकर के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हम मुलत: और अंततः भारतीय हैं इस विचार को केंद्र में रखकर डाॅ. आंबेडकर ने आस्था, करुणा, संवेदना और स्नेह की धरातल पर समाज को खड़ा किया. डाॅ. आंबेडकर ने बौद्ध धम्म की दीक्षा भलेही 1956 में ली, परंतु इसकी घोषणा उन्होंने 1934 में ही की थी. प्रो. शुक्ल ने कहा कि उनके विचारों का पुनर्पाठ करते समय संविधान और धम्म दीक्षा को देखना महत्वपूर्ण है. प्रति कुलपति प्रो. हनुमान प्रसाद शुक्ल ने कहा कि समता और व्यक्ति की गरिमा के लिए डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर ने जो संघर्ष किया वह संघर्ष का आदर्श है. बुद्ध का चिंतन उनके जीवन में दिखाई देता है.
प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने कहा कि जाति व्यवस्था को चुनौती देकर उसपर प्रहार करना डाॅ. आंबेडकर की बड़ी देन है. संपूर्ण भारतीय परंपरा का चिंतन कर उन्होंने कबीर, बुद्ध और महात्मा फुले को अपना आदर्श माना था. हमें अपने समय और समाज से लड़ने की ऊर्जा उनके विचारों से प्राप्त होती है. प्रो. एल. कारुण्यकरा ने अपने उद्बोधन में कहा कि डाॅ. आंबेडकर को बचपन से ही तिरस्कार का सामना करना पड़ा. 65 वर्ष के जीवन में डाॅ. आंबेडकर का अधिक समय जाति के संघर्ष में ही चला गया. प्रो. कारुण्यकरा ने डाॅ. आंबेडकर द्वारा लिखित पुस्तकों का संदर्भ देते हुए उनके व्यापक व्यक्तित्व की चर्चा की. उन्होंने विश्वविद्यालय में डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर की पुस्तक पढते हुई मूर्ति को स्थापित करने के लिए कुलपति प्रो. शुक्ल की प्रशंसा की, इसपर सभागार में उपस्थित सभी ने खड़े होकर जोरदार तालियाँ बजाकर कुलपति प्रो. शुक्ल का अभिनंदन किया.
डाॅ. के. बालराजु ने सामाजिक बुराइयों को दूर करने की दिशा में डाॅ. आंबेडकर के योगदान पर विस्तार से प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि डाॅ आंबेडकर ने समाज की भलाई के लिए जीवन न्योछावर कर दिया. देश के प्रति निष्ठा और निष्कलंक देशभक्ति के संबंध में उनके विचारों को समग्र रूप में जानने और समझने की आवश्यकता है. प्रस्‍तावित व स्‍वागत वक्‍तव्‍य में जनसंचार विभाग के अध्‍यक्ष प्रो. कृपाशंकर चौबे ने कहा कि डाॅ. आंबेडकर एक पत्रकार, लेखक और समाज सुधारक के रूप में दिखाई देते हैं. उनका जीवन स्वतंत्रता, समानता और बंधुता  के लिए समर्पित रहा है. डाॅ. आंबेडकर ने सन 1920 से 1956 तक पत्रकारिता की और सामाजिक सुधार को एक नई दिशा दी। कार्यक्रम का संचालन दूर शिक्षा निदेशालय के सहायक अध्‍यापक डॉ. संदीप मधुकर सपकाले ने किया तथा धन्‍यवाद हिंदी एवं तुलनात्‍मक साहित्‍य विभाग के सहायक अध्‍यापक डॉ. सुनील कुमार सुमन ने ज्ञापित किया। कार्यक्रम में अध्यापक, अधिकारी, शोधार्थी एवं गणमान्य नागरिक बड़ी संख्या में ऑनलाइन तथा ऑफलाइन शामिल हुए थे.

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