April 28, 2024

आंतरिक शक्ति संयम आत्म अनुशासन एवं सकारात्मकता बढ़ाती हैं योगनिद्रा

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल कई वर्षो से निःशुल्क योग प्रशिक्षण के द्वारा लोगो को स्वस्थ जीवन जीने की कला सीखा रहें हैं वर्तमान में एक वर्ष से अधिक समय से ऑनलाइन माध्यमों से योग प्रशिक्षण कार्य अनवरत चल रहा हैं | योग गुरु अग्रवाल ने बताया की वर्तमान विपरीत परिस्थितियों में भी व्यक्ति नियमित योग अभ्यास के साथ योगनिद्रा का अभ्यास करें तो अपने शरीर और मन को सकारात्मक रखते हुए स्वस्थ रह सकता हैं |आंतरिक शक्ति, संयम, आत्म अनुशासन एवं सकारात्मकता बढ़ाती हैं योगनिद्रा | योगनिद्रा का मतलब होता है अतीन्द्रिय निद्रा। यह वह नींद है जिसमें जागते हुए सोना है।* यह निद्रा और जागृति के मध्य की स्थिति है। यह हमारी आन्तरिक जागरूकता की स्थिति है। इसमें हम चेतना, अवचेतन मन और उच्च चेतना से सम्बन्ध स्थापित करते हैं। अभ्यास की प्रारम्भिक स्थिति में किसी बोलने वाले का होना आवश्यक है। इसके लिए यदि सम्भव हो तो टेप रिकार्डर का इस्तेमाल किया जा सकता है। आगे चलकर जब आपको निर्देश याद हो जायेंगे तो आप स्वयं ही अकेले में अभ्यास कर सकते हैं।

योगनिद्रा में अभ्यासी गहन शिथिलन की स्थिति में पहुँच जाता है। नींद की प्रारम्भिक तैयारी के रूप में भी इसका अभ्यास किया जाता है। बहुत से लोग यह नहीं जानते कि किस तरह सोना चाहिए। वे अनेक प्रकार की चिन्ताओं का बोझ लिए हुए अपनी समस्याओं पर विचार करते हुए सो जाते हैं। नींद में भी उनका मन सक्रिय तथा शरीर तनावपूर्ण रहता है। जब वे सोकर उठते हैं, तो उन्हें थकान लगती है। नींद के द्वारा उन्हें विश्राम नहीं मिल पाता। बहुत मुश्किल से कोशिश करते-करते वे आधे घण्टे के बाद बिस्तर से उठते हैं। अत: हर व्यक्ति को वैज्ञानिक ढंग से सोने की कला सीखनी चाहिए। *सोने के पहले योगनिद्रा का अभ्यास करें। इससे सम्पूर्ण शरीर और मन शिथिल हो । जायेगा। नींद गहरी आयेगी और कम समय में पूरी हो जायेगी और जागने पर आप ताजगी एवं स्फूर्ति का अनुभव करेंगे।*
योगनिद्रा के अभ्यास में शारीरिक केन्द्रों की स्थिति अन्तर्मुखी हो जाती है। इसी को प्रत्याहार कहते हैं। जब मन किसी केन्द्र पर एकाग्र हो जाता है, तब रक्त, प्राणशक्ति आदि भी उसी स्थान पर केन्द्रित हो जाते हैं। सभी इन्द्रियाँ उस केन्द्र पर वापस लौट जाती हैं। तब गहन शिथिलता की स्थिति प्राप्त होती है। फलस्वरूप तनाव समाप्त हो जाते हैं तथा मन साफ हो जाता है। विचार अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं। योगनिद्रा की स्थिति में हम अपने आन्तरिक व्यक्तित्व के साथ सम्बन्ध स्थापित करते हैं ताकि अपने तथा दूसरों के प्रति अपनी अभिवृत्तियों में उचित परिवर्तन ला सकें। यह आत्मनिरीक्षण की एक विधि है। इस विधि का प्रयोग अनेक योगियों द्वारा बहुत प्राचीनकाल से अपने आत्मा से सम्पर्क करने हेतु किया जाता रहा हैं।
अभ्यास के दौरान एक संकल्प लिया जाता है। यह संकल्प ऐसा होना चाहिए, जो आपके लिए बहुत महत्त्व रखता हो।* वस्तुतः संकल्प वे छोटे छोटे नीति वाक्य होते हैं, जिन्हें आप अपने अवचेतन मन में आरोपित करना चाहते हैं। योगनिद्रा की निष्क्रिय अवस्था में इस प्रकार के आत्म-सुझाव बड़े शक्तिशाली प्रमाणित होते हैं। इस तरह के संकल्प आपके सम्पूर्ण जीवन की दिशा परिवर्तित कर सकते हैं। यदि आप पूर्ण विश्वास के साथ अपने संकल्प की पुनरावृत्ति करें तो वे अवश्य पूरे होंगे। इस तरीके से आप अपनी आदतें बदल सकते हैं और अनेक प्रकार के मानसिक रोगों से मुक्त हो सकते हैं। संकल्पों के आध्यात्मिक उद्देश्य भी हो सकते हैं जैसे ‘मैं अधिक सजग बनूँगा।’ अभ्यास करते समय संकल्प को बार-बार तथा नियमित रूप से कई सप्ताहों तक दुहराना चाहिए। योगनिद्रा समाप्त होने के बाद आँखें खोलने के पहले अपने संकल्प का पुनः चिन्तन करें।
योगनिद्रा के समय द्रुतगति से दिये गए निर्देशों को सावधानी के साथ सुनते हुए उनका अनुसरण करना चाहिए।* यदि आप योगनिद्रा का अभ्यास सोने के उद्देश्य से नहीं कर रहे हैं तो अभ्यास की पूरी अवधि तक आपको पूर्ण रूप से सजग रहना होगा। अभ्यास करते समय सोयें नहीं। निर्देशों के अर्थ का बौद्धिक विश्लेषण भी न करें। उन्हें याद करने की भी कोशिश न करें, नहीं तो आपका मन थक जाएगा और नींद आ जाएगी।
योगनिद्रा का अभ्यास शवासन में लेटकर करें, आपका सिर समतल फर्श पर हो।* सिर और शरीर एक सीध में हों। पैरों के बीच थोड़ी दूरी हो। हाथ धड़ के पास हों। हथेलियाँ ऊपर की ओर खुली हुई हों। बिल्कुल स्थिर होकर लेटे रहें। शरीर पूरी तरह विश्रान्त और वस्त्र ढीले हों। योगनिद्रा शुरू होने के पश्चात् किसी प्रकार की शारीरिक हलचल नहीं होनी चाहिए। अभ्यास के समय पेट भरा नहीं होना चाहिए। आँखें अभ्यास की पूरी अवधि में बन्द रहेंगी।
योगनिद्रा की अवस्थाएँ
योगनिद्रा की साधारणत: निम्नलिखित अवस्थायें होती हैं, यद्यपि इनके क्रम तथा विषय-वस्तु को बदला भी जा सकता है
1. एक संकल्प लिया जाता है।
2. श्वास की सजगता
3. शरीर के 76 अंगों में चेतना को घुमाया जाता है। मन को एक अंग से दूसरे अंग की ओर तेजी से दौड़ना चाहिये। इस अभ्यास की एक से पाँच आवृत्तियाँ होती हैं। चेतना को शरीर के विभिन्न अंगों में घुमाते समय क्रम को बदलना नहीं चाहिये, क्योंकि हमारा अवचेतन मन एक निश्चित क्रम का आदी बन जाता है।
4. भारीपन, हल्केपन, गर्मी, सर्दी, कष्ट और आनन्द की अनुभूतियों का स्मरण अथवा उन्हें जाग्रत करना।
5. चक्रों के केन्द्रों तथा उनके अतीन्द्रिय प्रतीकों के प्रति सजग रहना होता है। जब उनके सही स्थानों का मानसिक स्पर्श किया जाए तो बिम्ब दिखाई पड़ सकते हैं या कुछ विशिष्ट अनुभव हो सकते हैं।
6. अभ्यास के अन्त में संकल्प को दुहराया जाता है। आत्म-चेतना तथा परमात्म-चेतना की एकता के प्रति सजग रहा जाता है।
7. धीरे-धीरे सामान्य चेतना में वापस आया जाता है और अपने अंगों को धीरे-धीरे हिलाया जाता है। ऐसा झटके के साथ नहीं किया जाता।

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