May 12, 2024

बुद्ध के कारुण्‍य की वैश्विक दृष्टि को समझने की है आवश्‍यकता : प्रो. कमलेशदत्त त्रिपाठी

वर्धा. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के दर्शन एवं संस्कृति विभाग तथा डॉ. भदंत आनंद कौसल्यायन बौद्ध अध्ययन केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में सोमवार, 16 मई को बुद्ध जयंती के पावन अवसर पर ‘अभिधम्म की विश्‍वदृष्टि’ विषय पर आयोजि‍त वेबिनार में विश्‍वविद्यालय के कुलाधिपति प्रो. कमलेशदत्त त्रिपाठी ने कहा कि बुद्ध के महाकारुण्‍य का जागरण विश्‍व‍ में करने का समय आ गया है। आज के परिप्रेक्ष्‍य में  बुद्ध के विचार-दर्शन की वैश्विक दृष्टि पर गहराई से विचार किया जाना चाहिए। प्रो. त्रिपाठी बतौर उद्धाटक संबोधित कर रहे थे। उन्‍होंने त्रिपिटक अर्थात सूत्र पिटक, विनय पिटक और अभिधम्‍म पिटक की चर्चा करते हुए कहा कि त्रिपिटक में बुद्धधम्‍म को व्‍या‍ख्‍यायित किया गया है और जनभाषा में इसका उपदेश दिया गया है। उन्‍होंने कहा कि अभिधम्‍म पिटक की शैली अलग है यह नीति और आचार पर केंद्रित है। उन्‍होंने उच्‍छेदवाद, शाश्‍वतवाद और मध्‍यममार्ग की चर्चा करते हुए अभिधम्‍म के नैतिक और प्रशीलात्‍मक पक्ष पर विस्‍तार से प्रकाश डाला।

संगोष्‍ठी की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि अभिधम्‍म पिटक विशिष्‍ट प्रकार की वैश्विक दृष्टि है। बुद्ध का धम्‍म बोध, परीक्षण और आचरण की समग्र परिणति है। हमें अभिधम्‍म का सफल रास्‍ता अपनाने की जरुरत है। उन्‍होंने वर्तमान वैश्विक परिस्थिति का संदर्भ देते हुए कहा कि मैत्री, करुणा और मुदिता के आधार पर सामाजिक व्‍यवस्‍था निर्मिति की आवश्‍यकता है। सारस्वत अतिथि के रूप में सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्‍वविद्यालय, सांची की कुलपति प्रो. नीरजा गुप्ता ने कहा कि अभिधम्‍म मनुष्‍य की मनस्थिति की बात रखता है। विचलित मन को ठीक करने का रास्‍ता बताता है। आज विश्‍व को मनोवैज्ञानिक रूप से अभिधम्‍म की आवश्‍यकता है।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद के सदस्य सचिव प्रो. सच्चिदानंद मिश्र ने कहा कि बुद्ध ने ढाई हजार वर्ष पूर्व नई प्रेरणा से नई दृष्टि को जन्‍म दिया।  अभिधम्‍म दृष्टि विच्‍छेद तथा समग्र विश्‍व के दु:ख के परित्‍याग की दृष्टि है। कार्यक्रम का स्‍वागत डॉ. भदंत आनंद कौसल्यायन बौद्ध अध्ययन केंद्र के प्रभारी डॉ. कृष्‍ण चंद्र पाण्‍डेय ने किया। मंगलाचरण ओमप्रकाश बौद्ध ने प्रस्‍तुत किया। संचालन दर्शन एवं संस्कृति विभाग के अध्‍यक्ष डॉ. जयंत उपाध्‍याय ने किया तथा डॉ. सूर्यप्रकाश पाण्‍डेय ने आभार ज्ञापित किया। संगोष्‍ठी में प्रतिकुलपति द्वय प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्‍ल, डॉ. चंद्रकांत रागीट सहित अध्‍यापक, शोधार्थी तथा विद्यार्थियों की उपस्थिति रही।

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