May 12, 2024

भारतीय संस्कृति के सभी पर्व संदेश देते हैं संसार परिवर्तनशील है, परिवर्तन से अर्जन होता है एवं जीवन का लक्ष्य आत्मज्ञान और ज्ञान सहित संसार यात्रा है : महेश अग्रवाल

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केन्द्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा तिथि से हिंदू नववर्ष शुरू हो रहा है. हिंदू नववर्ष यानी नया संवत्सर 2079, 2 अप्रैल से शुरू होगा. मान्यता है कि इस दिन ब्रह्मा जी ने धरती की संरचना की थी. भारतवर्ष ने विश्व को काल गणना का अद्वितीय सिद्धांत प्रदान किया है । सृष्टि की संरचना के साथ ही ब्रह्माजी ने काल चक्र का भी निर्धारण कर दिया । ग्रहों और उपग्रहों की गति का निर्धारण कर दिया । चार युगों की परिकल्पना, वर्ष मासों और विभिन्न तिथियों का निर्धारण काल गणना का ही प्रतिफल है । यह काल कल्पना वैज्ञानिक सत्यों पर आधारित है । मनुष्य ने काल पर अपनी अमिट छाप छोड़ने के उद्देश्य से कालचक्र को नियन्त्रित करने का भी प्रयास किया । उसने विक्रम संवत्, शक-संवत्, हिजरी सन्, ईसवी सन आदि की परिकल्पना की। हमारे देश में नव संवत्सर का प्रारम्भ विक्रम संवत् के आधार पर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से स्वीकार किया जाता है और पाश्चात्य दृष्टि से पहली जनवरी को नव वर्ष का शुभारम्भ होता है । हिन्दू नववर्ष को अगर प्रकृति के लिहाज से देखें, तो चैत्र शुक्ल पक्ष आरंभ होने के पूर्व ही प्रकृति नववर्ष आगमन का संदेश देने लगती है. प्रकृति की पुकार, दस्तक, गंध, दर्शन आदि को देखने, सुनने, समझने का प्रयास करें, तो हमें लगेगा कि प्रकृति पुकार-पुकार कर कह रही है कि नवीन बदलाव आ रहा है, नववर्ष दस्तक दे रहा है. वृक्ष अपने जीर्ण पुराने पत्तों को त्याग रहे हैं, तो  तेज हवाओं के द्वारा सफाई अभियान भी चल रहा है. फिर वृक्ष पुष्पित होते हैं, आम बौराते हैं, सरसों नृत्य करता है और यह सब मिलाकर वायु में सुगंध और मादकता की मस्ती घुल सी जाती है. इस प्रकार के समृद्ध नववर्ष को छोड़कर यदि हम किसी और तरफ भागते हैं तो इसे हमारी अज्ञानता के अतिरिक्त और कुछ नहीं कहा जा सकता है. जरूरत है इस अज्ञानता से हर एक को प्रकाश की ओर बढने की. शायद तभी हिन्दू नववर्ष की सार्थकता पुनः स्थापित होगी और इस सार्थकता के साथ समृद्धि, खुशहाली और विकास अपने पूर्ण रूप में प्रकाशमान होंगे.
योग गुरु अग्रवाल ने बताया  कि जगत् क्या है? संसार क्या है? अनेक मत और विचार पायेंगे इस पर आप। विभिन्न दृष्टिकोणों से विभिन्न दार्शनिकों ने इस पर विचार किया। सूर्य को जिस देश की भी धरती से देखो, वही सूरज है। उसी एक सत्य को अनेक चश्मों से दार्शनिकों ने देखा है। अनेक तत्त्वों से जगत् बना है। तत्त्व का मतलब पदार्थ है। पदार्थ स्थूल, तरल, वाष्पीय और अपार वाष्पीय, यानि ईथरिक होते हैं। जगत् में हर एक वस्तु का कारण मिश्रण और स्पन्दन है। चेतना स्पन्दनमय और स्फुरणमय है। बहुत से पदार्थ वायु के सम्पर्क में आते ही जल उठते हैं, क्यों? अनेक पदार्थों में जल के सम्पर्क में आने से संकोच अथवा प्रसारण क्यों होने लगता है? अग्नि के सम्पर्क से पदार्थों में रंग, स्वाद, गन्ध, आकार में परिवर्तन क्यों होता है? सोचिये। यह सारा संसार स्थूल और दिव्य, दृश्य और अदृश्य रसायनों से बना है, और कुछ नहीं। ऐसा ही है जीवन, मनुष्य, संसार और सृष्टि। हर चीज में होता है परिवर्तन, प्रस्फुरण और विकास। विज्ञान का एक नियम है कि मूल कभी घटता नहीं। ज्यों का त्यों रहता है, परन्तु स्थान काल और जलवायु के कारण पदार्थ में परिवर्तन मालूम पड़ता है। वैसे ही जीवन भी अलग-अलग रूप में झलकता है। 20 सेर का पत्थर, परन्तु अति उच्च पर्वत शिखर पर उससे कम वजन का और अन्तरिक्ष में उसे ले जाने पर वह और भी भारहीन हो जायेगा। कहने का तात्पर्य यह कि वस्तु या सृष्टि या जीवन सदा एक सा रहता है किन्तु स्थान, काल और भावना के अनुसार हमेशा विभिन्न स्वरूपों में दिखलाई पड़ता है। विशेषकर भावना या मानसिक स्पन्दन के कारण ही अनेक वस्तुएँ अनेक प्रकार की मालूम पड़ती हैं। बाह्य जगत् चाहे जैसा हो, परन्तु मन की भावना शक्ति और धारणा-शक्ति के अनुसार ही सबको सुख-दुःख, सर्दी-गर्मी और भूख-प्यास आदि उसी मात्रा में मालूम पड़ती हैं।
संसार में तीन बातों का सदा स्मरण रखकर कार्य करना चाहिये। यह शान्ति का मार्ग है  – संसार परिवर्तनशील है। परिवर्तन से अर्जन होता है। जीवन का लक्ष्य आत्मज्ञान और ज्ञान सहित संसार यात्रा है। इन तीन बातों को समझकर जो जीवन यापन करेगा वही शान्ति और सुख पायेगा। संसार परिवर्तनशील है, समझकर छोटी-छोटी बातों पर चिन्तित और दुःखी होना छोड़ देना चाहिये। बिना परिश्रम किये न संसार सधेगा और न परमार्थ ऐसा समझकर अनासक्तिपूर्वक धन, विद्या, यशादि का अर्जन कीजिये। जीवन का अन्तिम लक्ष्य आत्मज्ञान है, इसे योगसाधन से प्राप्त कीजिये।
सब कर्मों के साथ-साथ आसन, प्राणायाम, जप और ध्यान योग की नियमित साधना करना उचित है। अन्त में सभी को इस संसार से जाना ही है। परन्तु जब तक संसार में हैं, जीवन-यापन का कौशल जानना जरूरी है। ऐसा समझकर तटस्थ बुद्धि से ‘समत्वयोग उच्यते’ और ‘योगः कर्मसु कौशलम्’ का योग साधते हुए संसार यात्रा कीजिये।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Previous post पढ़ना लिखना अभियान अंतर्गत वनांचल विकासखंड नगरी में प्रौढ़ शिक्षार्थी साक्षर बनने महापरीक्षा में हुए सम्मिलित
Next post वनाधिकार : उड़ता पंचायत में किसान सभा ने किया प्रदर्शन
error: Content is protected !!