May 18, 2024

बच्चों के पास Smartphone और Social Media अकाउंट, कहीं आपके बच्चे को तो नहीं लगी ये लत


नई दिल्ली. आजकल बड़े ही नहीं बल्कि बच्‍चे भी स्‍मार्टफोन (Smartphone) के आदी हो चुके हैं. सोशल म‍ीडिया (Social Media) प्लेटफॉर्म लोगों की जिंदगी का एक अहम हिस्‍सा बन चुका है जिसे अब चाहते हुए भी हम इग्‍नोर नहीं कर सकते हैं. हालांकि, पैरेंट्स होने के नाते आपको यह पता होना चाहिए कि बच्‍चे के विकास पर सोशल मीडिया का क्‍या असर पड़ता है. इस बीच एनसीपीसीआर (NCPCR) की स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है.

‘गैरजरूरी कंटेट देख रहे बच्चे’ 

माता-पिता के लाड़-प्यार में बच्चों को दिया जानेवाला मोबाइल अब उनके लिये घातक साबित हो रहा है. कभी लर्निंग तो कभी प्यार के नाम पर दिया गया स्मार्टफोन अब उनके बिगड़ने की बड़ी वजह बन गया है. महज 8 से 10 साल के बच्चे आजकल इंस्टाग्राम (Instagram), फेसबुर (Facebook), स्नैपचैट (Snapchat) जैसे सोशल मंचों पर अकाउंट बना रहे है. जहां कुछ सीखने की बजाय वो आपसे नजरें चुराकर फिजूल के सोशल मीडिया कंटेट देख रहे है.

NCPCR रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा

राष्ट्रीय बाल सुरक्षा आयोग (NCPCR) ने चौंका देनेवाले आंकड़े जारी किए है देश के 6 राज्यों में किए गए सर्वे के मुताबिक 10 साल की उम्र के 38% बच्चे फेसबुक (Facebook) और 24% बच्चे (instagram) पर अकाउंट बना चुके हैं. ऐसे लाखों बच्चे स्मार्टफोन एडिक्ट हो चुके हैं यानी उन्हे सोशल मीडिया पर समय बिताने की लत लग चुकी है.

मेट्रो शहरों के हजारों पर हुआ शोध

NPCPR ने स्मार्टफोन और इंटर्नेट का बच्चों पर क्या असर हो रहा है ये जानने के लिए 3491 बच्चों पर स्टडी की गयी जिसमें 42.9 फीसदी बच्चों ने सोशल मीडिया पर अकाउंट होने की बात कही जबकि फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अकाउंट खोलने के लिए कम से कम 13 साल का होना जरूरी है.

सर्वे में दिल्ली, हैदराबाद, मुंबई, भुवनेश्वर, रांची और गुवाहाटी जैसे शहरों को शामिल किया गया. वहीं 8 से 18 साल के 30.2% बच्चों के पास पहले से ही अपना स्मार्टफोन है. 52 % बच्चे स्मार्टफोन/इंटरनेट डिवाइस का इस्तेमाल चैटिंग के लिए करते है. इसके लिए ये बच्चे वाट्सएप/फेसबुक/इंस्टाग्राम/स्नैपचैट जैसे इंस्टेंट मैसेजिंग ऐप का यूज करते हैं.

पैरेंट्स के फोन से बना अकाउंट

ज्यादातर बच्चों ने अपने मंमी-पापा के मोबाइल फोन के जरिए सोशल मीडिया पर अकाउंट बनाया है. सोशल मीडिया की दुनिया इतनी बड़ी है कि बच्‍चा कहां, कब और कैसे क्‍या जानकारी ले आप उसे चौबीसों घंटे कंट्रोल नहीं कर सकते हैं. ऐसी स्थितियां बच्चों को अश्लील या ग्राफिक वेबसाइटों तक पहुंचा सकती हैं, इससे उनकी सोचने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती हैं.सोशल मीडिया वेबसाइट के बीच साइबर बुलिंग भी बहुत बढ़ गई है. सोशल मीडिया पर ऐक्टिव बच्चों के साथ इंटरनेट एब्यूज (Internet Abuse) जैसी घटनाएं हो रही है.

ऐसी घटना होने पर बच्चे ये बात परिजनों को बताने में हिचकिचाते हैं. बच्चे इंटरनेट की दुनिया को ही सच्चाई मानने लगे हैं जिससे वो असल दुनिया से दूर हो रहे हैं और उनकी बुनियाद कमजोर हो रही है.

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