May 19, 2024

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस – मातृभाषा हमें राष्ट्रीयता से जोड़ती है और देश प्रेम की भावना उत्प्रेरित करती है : महेश अग्रवाल

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि मातृभाषा आदमी के संस्कारों की संवाहक है। मातृभाषा के बिना, किसी भी देश की संस्कृति की कल्पना बेमानी है। मातृभाषा हमें राष्ट्रीयता से जोड़ती है और देश प्रेम की भावना उत्प्रेरित करती है। विश्व में भाषाई एवं सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा देने के लिये 21 फरवरी को अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है ।

योग गुरु अग्रवाल ने बताया  मातृभाषा का शाब्दिक अर्थ हैं, माँ की भाषा। जिसे बालक माँ के सानिध्य में रह कर सहज रूप से सुनता और सीखता है। ध्यान योग बात यह है कि मातृभाषा को बालक माता-पिता, भाई-बहन अन्य परिवारीजनों तथा पड़ौसियों के बीच रह कर सहज और स्वाभाविक रूप से सीखता हैं। चूँकि बालक सामान्यतः माँ के संपर्क में ही अधिक रहता हैं, इसलिए बचपन में सीखी गई भाषा को मातृभाषा कहा जाता हैं। यदि कुछ विस्थापित परिवारों की बात छोड़ दे तो सामान्तः परिवार में दैनिक जीवन के विभिन्न क्रिया-कलापो में अनौपचारिक रूप से प्रयुक्त बोली/भाषा को ही वह मातृभाषा के रूप में सीखता है। उदाहरण के लिए यदि हम हिन्दी भाषा को लें तो यह कहा जा सकता है कि हिन्दी की विभिन्न बोलियाँ (ब्रज, अवधी आदि) ही उसके प्रयोक्ताओं के लिए मातृभाषा हैं। चूँकि बालक इन बोलियों को ही सबसे पहले सीखते हैं, इसलिए ये ही उसकी भाषाएं (भाषा) या स्व-भाषाएं हैं।अपने परिवारीजनों तथा अन्य स्वजनों के साथ अनौपचारिक रूप से बोली जाने वाली बोली को अपने ‘घर की बोली’ या ‘गाँव की बोली’ का दर्जा प्रदान करता हैं। उदाहरण के लिए, हिन्दी भाषी समुदाय के लिए उसकी बोलियाँ नहीं अपितु हिन्दी भाषा ही मातृभाषा के रूप में स्वीकृत भाषा हैं। मातृभाषा मनुष्य के विकास की आधारशिला होती हैं। मातृभाषा में ही बालक इस संसार में अपनी प्रथम भाषिक अभिव्यक्ति देता हैं। मातृभाषा वस्तुतः पालने या हिंडोल की भाषा हैं। बालक अपनी माँ से लोरी इसी भाषा में सुनता हैं, इसी भाषा में बालक राजा-रानी और परियों की कहानी सुनता है और एक दिन यही भाषा उस शिशु की तुतली बोली बनकर उसके भाव-प्रकाशन का माध्यम बनती हैं। इस प्रारंभिक भाव-प्रकाशन में माँ-बेटे दोनों आनन्द-विभोर हो जाते हैं। यह सुख अन्य भाषा में कहाँ? बच्चे की शिक्षा में मातृ भाषा का विशेष महत्व होता हैं। मातृ भाषा शिक्षा का सर्वोत्तम साधन होती है।

मातृभाषा के महत्व को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता हैं
मानसिक विकास के लिए विचार शक्ति की जरूरत होती है। विचारों का प्रवाह मातृ भाषा के द्वारा ही हो सकता हैं। विचार, भाषा को जन्म देते हैं और भाषा विचारों को जन्म देती हैं जिस व्यक्ति के पास जितनी सशक्त  मातृभाषा होगी उतनी ही उसकी विचार शक्ति सुदृढ़ होगी। भाषा में साहित्य का निर्माण होता है। भाषा साहित्य के द्वारा ही समाज में परिवर्तन होता है तथा सामाजिकता का विकास होता है। इस कार्य के लिए मातृभाषा अत्यंत उपयुक्त साधन हैं। भाषा के क्षेत्र में मातृभाषा ही एक ऐसा साधन है जो भौतिक तथा चारित्रिक गुणों को विकसित करती हैं।

मातृभाषा के ज्ञान पर बालकों के संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास निर्भर करता हैं। बालक के बौद्धिक, नैतिक और सांस्कृतिक विकास में मातृभाषा ही सहायक होती है। बालक के मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करने पर उसके शारीरिक अवयवों पर दबाव भी नही पड़ता है तथा सुनने, बोलने, लिखने एवं पढ़ने आदि से संबंधित सभी इन्द्रियों का विकास ठीक से होता है। मातृभाषा से मस्तिष्क और ह्रदय स्वतंत्रता पूर्वक कार्य करते हैं जबकि यदि शिक्षा अन्य भाषा में दी जाए तो मानसिक तनाव बढ़ सकता है।
भाषा के द्वारा व्यक्ति स्वतंत्र रूप से मनन, चिन्‍तन तथा वैचारिक अभिव्यक्ति करने में सफल हो पाता है। मातृ भाषा का चिन्‍तन मौलिक चिंतन होता है जो कि मातृ-भाषा के द्वारा ही संभव हैं। अतः इस मौलिकता में सृजनात्मकता का विकास होता हैं।  मातृ-भाषा व्यक्ति में मानवीय जीवन को कला का ज्ञान कराती है। मातृ-भाषा अपने घर व समाज के प्रति व्यवहार के साथ उत्तम नागरिकता के गुणों का विकास करती हैं। जीवन में सांस्कृतिक का अत्यधिक महत्व हैं। मातृभाषा द्वारा व्यक्ति के मूलभूत संस्कारों का ज्ञान होता है तथा यही सांस्कृतिक विचार, संस्कार के रूप में जीवन-दर्शन को शाश्वत बनाये रखते हैं ।
विचारों के आदान-प्रदान का उत्तम साधन मातृभाषा ही हैं, क्योंकि सभी लोग बोलकर, लिखकर या पढ़कर अपने विचारों को प्रकट करते है। अतः मातृ-भाषा में विचारों का आदान-प्रदान बहुत ही सरलता-पूर्वक होता हैं।मातृभाषा अध्ययन एवं अध्यापन का सरलतम् साधन हैं। भाषा शिक्षा की मूलधार हैं। भाषा के माध्यम से शिक्षक अपने बालकों को ज्ञान की पूर्णता से परिचित करवाता है। मातृभाषा के द्वारा व्यक्ति राष्‍ट्र की समस्याओं से अवगत होकर राष्‍ट्र की उन्नति में भागीदार बन सकेगा। आज हमारे राष्‍ट्र के सामने मुख्य लक्ष्य हैं– जनसंख्या नियंत्रण, आधुनिकीकरण, राष्‍ट्रीय एकता और अन्तरराष्ट्रीय अवबोध। इन सबकी शिक्षा व्यक्ति को मातृभाषा के माध्यम से ही दी जा सकती हैं। मातृभाषा में प्राप्त ज्ञान का प्रभाव स्थायी होता हैं।
स्वतंत्रता संग्राम के समय विद्वतजनों ने यह अनुभव कर लिया था कि शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा होने के कारण भारतीय चिंतन कुण्ठित हो गया हैं। राष्‍ट्र का जनमानस दासता की जकड़नों में जकड़ा हुआ था। राष्‍ट्रीय एकता को बनाए रखने के लिए देश के विद्वानों ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होगी। सन् 1956 ई. में देश के प्रान्तों का एकीकरण इसी भावना का प्रतिफल था जिससे राष्‍ट्रीय एकता की भावना मजबूत हो सके। स्वतंत्रता आंदोलन के समय विभिन्न प्रान्तों के नागरिकों ने अपनी मातृ-भाषा में ही भारत के आंदोलनों में भाग लिया था।

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