हिंदी विश्वविद्यालय में ‘स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों का योगदान’ पर व्याख्यान 5 सितंबर को
वर्धा. आज़ादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, भारत सरकार एवं महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के संयुक्त तत्वावधान में 5 सितंबर को ‘स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों का योगदान’ विषय पर एक व्याख्यान का आयोजन किया जा रहा है। गालि़ब सभागार में पूर्वाह्न 10.30 बजे आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल करेंगे। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, भारत सरकार, नई दिल्ली के सदस्य अनंत नायक उपस्थित रहेंगे। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में मध्यप्रदेश शासन, मुख्यमंत्री कार्यालय के उपसचिव लक्ष्मण राज सिंह मरकाम (आईएएस) एवं जनजाति आयोग की वक्ता प्रो. सीमा सिंह उपस्थित रहेंगी।
कार्यक्रम के दौरान फिल्म प्रदर्शन, छात्र संवाद, नाटक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुतियाँ होंगी। इस उपलक्ष्य में विश्वविद्यालय के अटल बिहारी वाजपेयी भवन में स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों के योगदान पर पोस्टर प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी, जिसमें स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों के योगदान और संघर्ष को प्रदर्शित किया जाएगा। इस आयोजन में वर्धा और आसपास के आदिवासी विद्यार्थियों एवं अध्यापकों की सहभागिता भी रहेगी। विद्यार्थियों से निवेदन करते हुए राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने कहा है कि हम सब इस वर्ष आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। यह एक स्वर्णिम अवसर है जब हम स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए हुए संघर्षो और बलिदानों को याद करने का एवं वीरगाथाओं का पुनर्पाठ कर सकते हैं। स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति समाज का अविस्मरणीय योगदान रहा है।
स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति समाज के योगदान और जनजाति नायकों के बलिदानों को जनजाति समाज की युवा पीढ़ी के साथ साझा करने के लिए देशभर में 100 से अधिक विश्वविद्यालयों में ‘स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों का योगदान’ विषय पर कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं। वर्धा विश्वविद्यालय में होने वाले इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करें। अपने पूर्वजों की वीरगाथाओं को सुने, उनके बलिदानों को जानें और स्वयं में अपने समाज के प्रति गौरव का भाव जागृत करें। साथ ही यह एक अवसर भी है, जब हम अपने पूर्वजों की परंपरा का निर्वहन करते हुए राष्ट्र की रक्षा, उन्नति और विकास में स्वयं की भूमिका का संकल्प लें।
आयोग का कहना है कि संगठित आंदोलनों और विद्रोहों के अतिरिक्त जनजाति समाज द्वारा वैयक्तिक बलिदानों की भी एक लम्बी श्रृंखला रही है। हज़ारों नाम तो ऐसे हैं जिनका बलिदान इतिहास के पन्नों में दर्ज ही नहीं हो पाया। आज भी जनजाति समाज में ऐसे अनेक लोकगीत और कथाएँ प्रचलित हैं जो अंग्रेजों के साथ हुए समाज के संघर्ष को रेखांकित करती हैं।