विपश्यना को दिनचर्या का हिस्सा बनाएं : प्रो. चंद्रकांत रागीट
वर्धा. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर योग सप्ताह के अंतर्गत डॉ. भदंत आनंद कौसल्यायन बौद्ध अध्ययन केंद्र द्वारा 23 जून को सम्मिश्र पद्धति से ‘बौद्ध साधना में विपश्यना’ विषय पर आयोजित विशिष्ट व्याख्यान में अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए प्रतिकुलपति प्रो. चंद्रकांत रागीट ने कहा कि विपश्यना एक आसान योग प्रक्रिया है, हमें इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना चाहिए।
विश्वविद्यालय के तुलसी भवन स्थित महादेवी वर्मा सभागार में संबोधित करते हुए प्रो. रागीट ने कहा कि योग किताबों पढ़ने से नहीं बल्कि नियमित प्रयोग से सीखा जा सकता है। विपश्यना की खोज स्वयं तथागत बुद्ध ने की है और उन्होंने इसे आसान तरीके से जनसामान्य के लिए सुलभ बनाया है।
विशिष्ट अतिथि नव नालंदा महाविहार, नालंदा के पाली विभाग के अध्यक्ष प्रो. राम नक्षत्र प्रसाद ने बौद्ध साधना में विपश्यना की चर्चा करते हुए कहा कि प्रज्ञा ही विपश्यना है। इस साधना में आनापान सति की प्रक्रिया निहित है। उन्होंने विपश्यना योग पद्धति और बौद्ध साधना में उसके महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला।
स्वागत वक्तव्य संस्कृति विद्यापीठ के पूर्व अधिष्ठाता प्रो. नृपेंद्र प्रसाद मोदी ने दिया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. भदंत आनंद कौसल्यायन बौद्ध अध्ययन केंद्र के सहायक प्रोफसर डॉ. कृष्ण चंद पाण्डेय ने किया तथा आभार केंद्र के सहायक प्रोफेसर डॉ. राकेश फकलीयाल ने ज्ञापित किया। मंगलाचरण भदन्त नागरतन ने प्रस्तुत किया। इस अवसर पर लंदन की मूल निवासी तथा चंद्रमौलि फाउंडेशन, वाराणसी की सहसंस्थापक, प्रख्यात संस्कृत साधक डॉ. लूसी गेस्ट (दिव्यप्रभा), डॉ. सुरजीत कुमार सिंह, डॉ. हिमांशू शेखर, डॉ. रूपेश कुमार सिंह, डॉ. वरूण कुमार उपाध्याय सहित केंद्र के शोधार्थी एवं विद्यार्थी प्रत्यक्षत: तथा आभासी माध्यम से जुड़े थे।