May 13, 2024

रामनवमी – समुद्र की भांति स्थिर, धीर, वीर और गंभीर स्वभाव में रत रहने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के गौरव हैं : महेश अग्रवाल

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि रामनवमी के पावन पर्व पर योग साधकों द्वारा सामूहिक योग साधना करते हुए सभी के लिये स्वस्थ जीवन की कामना की गई । श्री राम आस्था से ज्यादा अनुकरण का विषय हैं । समुद्र की भांति स्थिर, धीर, वीर और गंभीर स्वभाव में रत रहने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के गौरव हैं।  योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि चिन्ता का कारण है परमेश्वर की महत्ता, सर्वज्ञता, सर्वशक्तिमत्ता और सर्वव्यापकता तथा दयालुता पर परम विश्वास का अभाव। यद्यपि हमें यह सब कह दिया गया है, पर हम इसे जानते भर हैं, मानते नहीं। यह राम कौन है? वही जो इस शरीर में रमा है। माइक्रोस्कोप से वह नहीं दिखता। दिव्य-दृष्टि से देखो, जो सुमिरन से हृदय में प्रकट होता है। जैसे भूतादि सिद्धियों से गुप्त धन दीख पड़ता है, वैसे ही रमे हुए राम के दर्शन हो जाने पर ही छिपा खजाना खुलता है। यह राम कौन? जो हृदयाकाश में, दहराकाश में 72,000 मार्गों से लौटता है। जैसे मकड़ी के गर्भ से ऊर्ण और अंगार से चिन्गारियाँ प्रकट होती हैं, वैसे ही समस्त प्राण, समस्त लोक, समस्त देव और समस्त भूत इसी महापुरुष से प्रकट हुए फैले पड़े हैं। वह तुम्हारे, मेरे और सबके अन्दर सातवें लोक, सातवें चक्र और सातवें आसमान और सातवीं भूमिका में बैठा हुआ लीला कर रहा है। ऐसे महान् देव की शरण में न जाकर जो इन्द्रियों के स्वाभाविक धर्मों का ही पालन करे, उसे दुःख और चिन्ता नहीं तो क्या आनन्द मिलेगा? एक-एक ही इन्द्रिय के स्वाभाविक धर्म का पालन करते हुए पतंगा, भौरा, मछली, हाथी और हिरण नाश को प्राप्त होते हैं। और, जो पाँचों इन्द्रियों के धर्मों का वशवर्ती हो, उसको भगवान् ही बचायें। इसीलिए ताकीद की गई है कि सभी धर्मों को प्रभु में त्याग और चिन्ता को छोड़। वैसे भी देखा जाय तो चिन्ता बे-अन्त है। यह तो बढ़ती ही जाती है। यही महान् दु:ख है। यद्यपि तुम भलीभाँति जानती हो कि प्रभु के अनुग्रह से प्रत्येक घटना घटती जा रही है, और वे अपने दयालु स्वभाव से प्रेरित होकर तुम्हारा कल्याण करते जा रहे हैं; तथापि चिरसंचित अविश्वास श्रद्धा को बार-बार या कभी-कभी हटा ही देते हैं। यह भी सत्य है कि जो चिन्ता करते हैं, वे सब कुछ पा सकने पर भी सुखी नहीं बन सकते। अतः सुखी जीवन बिताना चाहो, तो परम कल्याणकारी प्रभु पर ही सब कुछ छोड़ दो, वे जिस हालत में रखें, उसी में मस्त रहो। अपना और अपने बच्चों का भार उनके हवाले कर अपने मानस को हल्का बनाओ! व्यर्थ की चिन्ता भी है, पर यह गलत बात है न? कोई तुम्हारी चिन्ता के अनुसार तो नहीं बनेंगे।
दुनिया में कितना काम बिखरा पड़ा है। किसी को यह सूझ ही नहीं रहा है। सबके सब बैंक भरने को ही जीवन का लक्ष्य मान बैठे हैं। अरे भई, चार बच्चों को ही हमने दुनिया क्यों माना? क्या मेरे और बच्चे अनाथों की तरह नहीं भटक रहे हैं। दुनिया का भला सोचो तो तर जाओगे । राम का चिन्तन करो तो उड़ जाओगे । जप से अन्तःकरण साफ होता है; ध्यान से धुलता है; समाधि से चमक जाता है। चिन्ता के रहते जीवात्मा के तीन दोष-मल, विक्षेप और आवरण बढ़ते जा रहे हैं। इनके रहते अन्तर्ज्योति का मार्ग बन्द पड़ा है। चिन्ता नास्तिक धर्म है। अतः सच्चा आस्तिक या ईमानदार आस्तिक वह है, जिसे चिन्ता नहीं व्यापती, और जो चिन्तन से ही लोक-व्यवहार निपटा लेता है। तुमको अभी भी चिन्तन का आर्ट नहीं आया। यहीं पर तुम्हारी गाड़ी अटकी पड़ी है, उसका पुर्जा बिगड़ गया है। बारम्बार चिन्ता करने से निराशा, भय, हृदय रोग, ब्लड प्रेशर तथा अन्य दोष उत्पन्न होते हैं, यहाँ तक कि कैंसर भी हो जाता है। चिन्तित व्यक्ति ही दिमागी तनावों को हल्का करने के लिए शराब क्लब, धूम्रपान, निद्रा की शरण में जाते हैं। चिन्ता ही तमाम दोषों की जड़ है।
चिन्ता के मूल में जीव का अहम् और उसकी तृष्णा छिपी हुई है। अहम् गया कि तृष्णा मिटी और चिन्ता गई। आत्मा को अन्दर और बाहर से विश्वासमय बना कर रखो; पूर्णतः श्रद्धावान् बनो। अन्दर से भी हँसो और बाहर से भी हँसो। कर्म, धर्म और मर्म तीनों को आनन्दमय बनाकर रखो। प्रभु को तुम्हारे योग-क्षेम का पूरा खयाल है। वे तुम्हारी तमाम जरूरतों से वाकिफ हैं। तुम्हें पुरुषार्थमात्र करना है। वह भी निष्काम भाव से और कर्त्तापन के अभिमान से पूर्णतया मुक्त होकर।  जब यात्री अपना भार रेलगाड़ी पर रख देता है, तो भारमुक्त रहकर भी भार को संग-ही-संग ले जाता है। तुम्हें भी तमाम कर्म प्रभु को आश्रय बनाकर करने पड़ेंगे।
चिन्तन, एकाकारता, स्थिति और तल्लीनता आ जाय, तो जीवन पूरे का पूरा यज्ञमय बन जाता है। दुनिया में आज तक जितने भी सफल व्यक्ति हुए हैं, वे सभी बड़े स्थिर स्वभाव वाले हैं। वे खुशी में पागल नहीं होते हैं और न ही दुःख में टूटते हैं, यही सफलता का मूल मंत्र भी है। जिसने भी श्रीराम का चरित्र रत्तीभर भी जी लिया, उसका जीवन धन्य हो गया।

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