April 25, 2024

विश्व कैंसर दिवस – खाद्य पदार्थ के उत्पादन एवं संरक्षण की रासायनिक विधि कैंसर, ट्यूमर और दूसरे घातक रोगों का प्रमुख कारण : योग गुरु

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केन्द्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि  सभी रोग, चाहे वे पाचन सम्बन्धी हों या रक्त परिसंचरण सम्बन्धी, असावधानी और स्वास्थ्य के नियमों के प्रति लापरवाही से ही पैदा होते हैं। सही समय पर कैंसर की बीमारी का पता चल जाए तो इसका इलाज संभव है -उपवास, अच्छी नींद, शुभ चिंतन योग व्यायाम, सात्विक आहार जरुरी ।
विश्व कैंसर दिवस की स्थापना अंतरराष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण संघ द्वारा की गई।  विश्व भर में 04 फरवरी को हर साल विश्व कैंसर दिवस मनाया जाता है। इस साल विश्व कैंसर दिवस को क्लोज द केयर गैप थीम के साथ मनाया जा रहा है। इस दिवस पर विभिन्न सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा कैंसर से बचाव के विभिन्न जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं ।
दुनिया की सभी जानलेवा बीमारियों में कैंसर सबसे ख़तरनाक है क्योंकि कई बार इसके लक्षणों का पता ही नहीं चलता। जब इस बीमारी के होने का खुलासा होता है, तब तक काफी देर हो चुकी है और कैंसर पूरे शरीर में फैल चुका होता है। इसी वजह से कई लोगों को उचित इलाज का समय ही नहीं मिल पाता और उनकी मौत हो जाती है। अगर वक्त पर कैंसर की बीमारी का पता चल जाए तो इसका इलाज संभव है।
योग गुरु अग्रवाल ने बताया  कैंसर की पहचान शरीर की कोशिकाओं की अनैच्छिक, असामान्य तथा अनियमित वृद्धि से होती है। शरीर में नई वृद्धि या सूजन ट्यूमर कहलाती है। सामान्य रूप से ट्यूमर दो प्रकार के होते है: स्वास्थ्य प्रद तथा हानिकारक । एक हानिकारक ट्यूमर अंततः कैंसर में परिवर्तित हो जाता है। कैंसरग्रस्त कोशिकायें शरीर के जैवप्रद पोषक तत्वों को ग्रहण कर लेती हैं, जिसके फलस्वरुप रोगी की मृत्यु हो जाती है।
वर्गीकरण : कैंसरग्रस्त कोशिकायें शरीर के किसी भी भाग में आरंभ हो सकती हैं। शरीर का प्रत्येक विशिष्ट भाग एक विशेष तथा भिन्न प्रकार का कैंसर उत्पन्न करता है। त्वचा, ग्रंथियों तथा झिल्लियों का कैंसर कार्सिनोमा; हडिड्यों, माँसपेशियों या संयोजक ऊतकों का कैंसर सरकोमा; त्वचा की वर्णक कोशिकाओं का कैंसर मेलानोमा; लसीका ग्रंथियों का कैंसर लिम्फोमा तथा रक्त का कैंसर ल्यूकेमिया कहलाता है। कैंसर न तो संक्रामक और न ही संचारी रोग है। यह एक आनुवंशिक रोग भी नहीं है। अधिकतर वयस्क लोग अपने जीवन के मध्य काल में या उत्तरार्द्ध में कैंसर से ग्रस्त होते हैं। आजकल बच्चों तथा २९ वर्ष से कम आयु के युवाओं में भी इस रोग की प्रवृत्ति होती है।
कारण :  वैज्ञानिकों का निर्णय है कि कैंसर के कारणों में एक है- दवाओं का प्रयोग। विभिन्न दवाओं के रासायनिक तत्त्व अनुमान से परे होते हैं। सेवन करने के बाद से कई वर्षों तक वे रक्त तंतुओं में विद्यमान रहते हैं। आधुनिक दवाइयाँ मिश्रित कृत्रिम रसायन विधि से तैयार होती हैं।
इस सदी में कैंसर रोग को गति देने में दवाओं के साथ समानान्तर काम कर रहा है आज का रासायनिक विधि से उत्पन्न भोजन। खाद्य पदार्थ संरक्षण की रासायनिक विधि एक दूसरा घातक तथ्य है। ये परिरक्षित चीजें जानवरों पर किये खोज कार्यों के आधार पर कैंसर, ट्यूमर और दूसरे घातक रोगों की कारण सिद्ध हुई हैं। उनके सेवन से देह का तापमान गिर जाता है और कैंसर और ट्यूमर हो सकते हैं। कैंसर और ट्यूमर शीत रोग के अन्तर्गत आते हैं, जो तभी आक्रमण करते हैं और बढ़ते हैं, जबकि शरीर का तापमान एक खास सीमा तक नीचे गिर जाता है। कैंसर सामान्यतया अपमिश्रित या गैर-जैवप्रद भोज्य पदार्थों के लगातार सेवन करने से होता है। कुछ चिकित्सकों का विचार है कि यह विटामिन की कमी से होने वाला एक रोग है। अन्य चिकित्सक यह विचार व्यक्त करते हैं कि यह कुपोषण से होने वाला एक रोग है। जीभ के उपदंशी घाव (सिफलिटिक लेसियन) के कारण जीभ का कैंसर हो सकता है। सूर्य की रोशनी में ज्यादा समय तक अनावृत होने से त्वचा का कैंसर हो सकता है। अत्यधिक मात्रा में एल्कोहलिक पदार्थों के सेवन से कंठनली तथा लीवर का कैंसर हो सकता है। सिगरेट का धूम्रपान फेफड़ों के कैंसर का एक कारक प्रतीत होता है। तम्बाकू मिश्रण के साथ पान का पत्ता चबाने से मुँह तथा लीवर का कैंसर हो सकता है। अत्यधिक या अक्सर होने वाले प्रसव से गर्भाशय का कैंसर हो सकता है। चूना के साथ तम्बाकू की सूखी पत्तियाँ चबाने से मुँह तथा उदर का कैंसर हो सकता है।
चेतावनी के संकेत : अमेरिकी कैंसर संगठन ने कैंसर के लिये छः चेतावनी के संकेतों का अनुमोदन किया है : १. ऐसा घाव, विशेषकर मुँह, जीभ या ओठों पर, जिसका उपचार नहीं हो पा रहा है। २. वक्षस्थल या अन्य कहीं एक पीड़ारहित उभार तथा स्थूलन। ३. शरीर के किसी मुख-भाग से रक्तिम स्राव । ४ लगातार बना रहने वाला अपचन या निगलने में कठिनाई। लगातार बना रहने वाला स्वरभंग या खाँसी । ६. किसी मस्से के रंग या आकार में कोई परिवर्तन ।यदि इन चेतावनी के संकेतों पर ध्यान दिया जाये तथा किसी चिकित्सक की सलाह की जाये तो समय पूर्व मृत्यु की संभावना को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
उपचार :  कैंसर का उपचार तीन आधारभूत तथा मान्यताप्राप्त विधियों द्वारा किया जाता है – शल्य क्रिया (सर्जरी), विकिरण उपचार पद्धति (रेडियेशन थेरैपी) तथा रसायन चिकित्सा (केमोथेरैपी) । शल्य क्रिया (सर्जरी) पद्धति: शल्यक्रिया कैंसर के उपचार की सर्वाधिक पुरानी विधि है। हानिकारक ट्यूमर को शल्यक्रिया द्वारा हटाने से शरीर की सामान्य प्रक्रिया को पुन: दुरुस्त करने, दर्द से आराम पाने तथा कैंसर की वृद्धि को कम करने में भी सहायता मिलती है।
विकिरण उपचार पद्धति (रेडियेशन थेरैपी) : सीमित कैंसर के कुछ प्रकारों, जैसे त्वचा, गर्भाशय की ग्रीवा (यूटेरिन सर्विक्स) या कंठनली में उत्पन्न होने वाले, में बाह्य रूप से एक्स-रे डालने से इस रोग का पूर्ण निदान हो सकता है। ट्यूमरों का विकिरणीकरण रेडियोएक्टिव पदार्थों के आंतरिक व्यवस्था के द्वारा भी किया जा सकता है। कभी-कभी किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ जैसे रेडियम सीधे ट्यूमर में निविष्ट किया जाता है।
रसायन चिकित्सा (केमोथेरैपी) : यह रसायनों की सहायता से कैंसर के उपचार का प्रयास है। ये रसायन चुनिंदा तरीके से कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं या सामान्य कोशिकाओं को कोई गंभीर हानि पहुँचाये बिना कैंसरग्रस्त कोशिकाओं के विकास को अवरोधित कर देते हैं। वैज्ञानिकों ने नई औषधियों जैसे बुसल्फान, क्लोरमब्युसिल, साइक्लोफॉसफामाइड तथा एण्टीमेटाबोलाइट्स को विकसित किया है, जिनका बिना किसी कुप्रभाव के तत्काल प्रयोग किया जा सकता है।
हार्मोन उपचार : यह रसायन चिकित्सा का ही एक अन्य प्रकार है। नर या मादा हार्मोनों की व्यवस्था से वक्षस्थल तथा प्रोस्टेट ग्रंथियों के कार्सिनोमा में अस्थायी परन्तु पर्याप्त सुधार हो सकता है।
फलों के रस द्वारा उपचार : शारीरिक रासायनिकी तथा कोशिका उपापचय में असंतुलन होने के कारण कैंसर, गठिया (आर्थराइटिस) तथा हृदय आघात जैसे अपहासी रोग होते हैं। इन्हें पर्याप्त मात्रा में कच्चे फलों के रस के सेवन से सम्पूर्ण शरीर की विस्तृत रूप से विषाक्तता को दूर करके सरलतापूर्वक ठीक किया जा सकता है। कोई अन्य भोज्य पदार्थ इतने प्रभावी ढंग से सम्पूर्ण शरीर की विषाक्तता को दूर नहीं कर सकता। अब यह एक स्थापित तथ्य है कि पोषक कारक कैंसर का संवर्द्धन करते हैं। अपमिश्रित, पके हुये तथा विटामिनरहित भोज्य पदार्थों का लगातार सेवन समस्त प्रकार के अपहासी रोगों जैसे कैंसर, गठिया (आर्थराइटिस) तथा हृदय आघात का कारण है। हमें अपनी खान-पान की आदतों को बदलना चाहिये। अपने शरीर को ऐसे किसी अपहासी रोग से मुक्त से रखने के लिये हमें प्रतिदिन पर्याप्त मात्रा में ताजे फलों तथा सब्जियों के रस का सेवन करना चाहिये |
योग उपचार  :  योग कैंसर को ठीक कर सकता है। इसमें प्रायोगिक कार्य अभी चल रहे हैं। जहाँ ‘मेडिकल थेरेपी’ का सवाल है, इसमें ध्यान, प्राणायाम और कुछ योगासनों से कैंसर के रोगी को अवश्य लाभ होगा। चर्म कैंसर में अमरोली का अभ्यास शुरू करना चाहिये। इसमें स्वमूत्र का प्रयोग अन्दर और बाहर दोनों रूपों में करना होगा। इस पर अध्ययनों से जानकारी मिलती है कि हमारे मूत्र में बहुत में प्रकार के रासायनिक तत्त्व, हार्मोन और एन्जाइम्स होते हैं और इनका लाभदायक प्रभाव बीमारियों को ठीक करने में प्राप्त होता है। कैंसर की सहज अवस्था में अमरोली का प्रयोग सुरक्षित रूप से किया जा सकता है ।
प्राकृतिक चिकित्सा : औषधीय आहार – लहसुन, गेहूँ के जवारे का रस, गाजर- बीट रस, आँवला, बंदगोभी, फायबर खाद्य, अदरक, प्याज, अंगूर, विटामिन ‘ए’ एवं ‘सी’ युक्त आहार, मुख्य उपचार – उपवास, एनिमा, धूपस्नान, छाती लपेट, ब्रेस्ट पर मिट्टी,  मेहन-स्नान, कमर के व्यायाम, शुभचिंतन,   कटि- स्नान, पेट पर मिट्टी-पट्टी, सूती-ऊनी लपेट, शवासन नियमित योग प्राणायाम अभ्यास , परहेज – घी-तेल चिकनाई, मांस- मछली, अण्डे, गरिष्ठ भोजन, कामी विचार एवं अशुभ चिंतन, बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, गुटखा, शराब,
कैंसर रोधी औषधीय वनस्पति  : तालिस पत्र ( थोना / गिरमी ) का पत्ती, फल | भिलावा /भल्लातक का फल | बन ककड़ी का मूल तथा रेजिन | सदाबहार का जड़ और पत्र | चित्रक का मूल त्वक.

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