May 9, 2024

विश्व ओजोन दिवस – ओजोन पृथ्वी पर जीवन के लिए जरुरी, भारतीय परम्परा में यज्ञ सम्पूर्ण सृष्टि का केन्द्र, यह समस्त संसार को क्रियान्वित करता है : महेश अग्रवाल

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र  स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने कहा कि 16 सितंबर को पूरा विश्व ओजोन दिवस के रूप में मनाता है , अगर हम किसी आम जनमानस ओजोन के बारे में पूछे तो शायद ही वह उत्तर दे सके, परंतु जब हम उसे पृथ्वी के ऊपर एक ऐसे परत की बात कहे जो पूरे पृथ्वी को एक छाते के रूप में ढक कर रखता है और जो सूर्य की किरणों से आने वाले पराबैगनी किरणों को पृथ्वी पर आने से रोकता है और उन्हें वापस भेज देता है, तो हर कोई इस तथ्य को समझ जाता है अगर इसी को दूसरे तरह से कहें कि जिस प्रकार हम अपने शरीर को अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाने के लिए सनस्क्रीन क्रीम लगाते हैं ठीक वैसे ही पृथ्वी को भी घातक अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाने का काम पृथ्वी के ऊपर ओजोन परत करती है। विज्ञान को अगर हम आम जन की भाषा में समझाएं और बताएं तो लोग विज्ञान से अपना जुड़ाव महसूस करते हैं और विज्ञान से जुड़कर व्यक्ति  प्रकृति से जुड़ते हैं।  वर्तमान समय में हर पुरानी परंपरा, रीति नीति को विज्ञान की कसौटी पर परखा जा रहा है। जाहिर है इस कारण यह जानना जरूरी है कि हम अपने परंपराओं पारंपरिक चीजों संस्कृति सांस्कृतिक क्रियाकलापों के पीछे छिपे विज्ञान को भी समझें और दूसरे को बताएं ताकि भारतीय संस्कृति और सभ्यता पूरी दुनिया में श्रेष्ठ साबित हो सके |

योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि पर्यावरण की समस्या  वायु प्रदूषण का समाधान एकमात्र याज्ञीक क्रिया है जो वेदों में वर्णित है। उनके अनुसार यज्ञ में जो हवन आहुति की जाती है उसमें सबसे महत्वपूर्ण गोघृत है। गोघृत में वह शक्ति है जिससे जल-वायु में मिले विष का तत्काल विनाश हो जाता है जब गोघृत को चावल के साथ मिश्रित करके यज्ञ में आहुति डाली जाती है तो इससे एसिटलीन नामक तत्व उत्पन्न होता है जो कि प्रदूषित वायु को अपनी तरफ खींचकर शुद्ध कर देता है। यज्ञाग्नि में आहुति डालने से वायुमण्डल में मार्जन, शोधन और भेदन क्रिया उत्पन्न होती है। यज्ञाग्नि में प्रयुक्त द्रव्य सूक्ष्मातिसूक्ष्म होकर उत्तरोत्तर ऊपर की ओर गति करता है। इस प्रकार घर्षण से वायु प्रदूषक तत्वों का विनाश होने लगता है। वैदिक ग्रन्थों में ऐसे परत की संरक्षा के लिए उसके दोषों, विकारों को दूर करने के लिए पहले से ही उपाय बताया गया है। कहा गया है कि इस दृश्य जगत से 32 किलोमीटर ऊपर ओजोन परत है; उसकी रक्षा हवन से यज्ञ कर्म से करनी चाहिए- यज्ञ मानव जाति के प्राणशक्ति के रक्षा का द्योतक है। यज्ञ से ही प्रगति संभव है। यज्ञ से ही मनुष्य पापों (प्रदूषणों) से बचकर कल्याणकारी कार्य की ओर प्रवृत्त होता है। याज्ञिक प्रवृत्ति से व्यक्ति हिंसात्मक कार्य नहीं करता। सुख और सुरक्षा सहस्त्रों प्रकार की पुष्टि वाक्शक्ति व आत्मबल बुद्धि व ज्ञान और प्रदूषण रहित स्थान अथवा वातावरण प्राप्त होता है।
यदि मानवीय जीवन को बदलते परिवेश में सुरक्षित, व्यवस्थित और सुस्थिर रखना है अर्थात् जीवन को दीर्घजीवी बनाना है तो हमें वैदिक व उत्तर वैदिक चिन्तन परम्पराओं में बताये गये जीवन सूत्रों को अंगीकृत और आत्मार्पित करना होगा। मानव समाज में पारिस्थितिक तंत्र को सुस्थिर रखने के लिए पर्यावरणीय सुरक्षा का बोध पैदा करना होगा और सृष्टि के पस्पर निर्भरता के सिद्धान्त को जीवन्त बनाना होगा। विभिन्न पाश्चात्य चिन्तकों ने भौतिकवादी उपभोक्तावादी जीवनदर्शन को त्यागकर अब वैदिक दर्शन की त्याग की संस्कृति को अपनाने पर बल दिया है।
*पृथ्वी पर प्रदूषण दूर करने में यज्ञ का विशेष महत्व है।* भारतीय परम्परा में यज्ञ सम्पूर्ण सृष्टि का केन्द्र है। यह समस्त संसार को क्रियान्वित करता है। जीवों में स्वच्छ वायु प्रवाहित कर उन्हें दीर्घायु बनाता है। वातावरण को मधुर व स्वास्थ्यवर्धक बनाता है। मानसिक असन्तुलन दूर करता है।
यज्ञ का प्रमुख देवता अग्नि है। जब अग्नि में विभिन्न शोधक पदार्थों की आहुति देकर उसे प्रज्वलित किया जाता है। तो उससे जल, भूमि, वृक्ष अन्नादि सभी संपुष्ट और स्वास्थवर्धक होते हैं। इससे वायुमण्डल में आर्द्रता और भार में वृद्धि होगी। समय से वर्षा होने से वनों का पालन होगा व अन्नों में वृद्धि होगी और सूखा, तूफान, आंधी आदि उपद्रव शांत होंगे। इस वाक्यांश का अर्थ यह हुआ कि सृष्टि में वास करने वाले सभी जीव व वनस्पतियाँ अपने चारों तरफ के वायुमण्डल से प्रभावित होते हैं यदि वायुमण्डल में शुद्ध वायु प्रवाहमान हो तो वायुमण्डल संपोषी होगा तथा जीवन सुस्थिर प्रभावशाली. प्रदूषणरोधी व स्थायी होगा।  वैदिक परम्परा में ज्ञान का आधार यज्ञ है। अर्थात ‘यज्ञ’ ही ज्ञान की उत्पत्ति करता है। यज्ञ से संपूर्ण परिवार अर्थात संसार का प्रत्येक प्राणी सौ वर्षों तक लम्बी आयु तक जीवित रहता है। ऋग्वेद में यज्ञ को प्राचीनतम धर्म माना गया है। यज्ञ को धर्म मानकर प्रत्येक व्यक्ति को उसे आत्मसात करने पर बल दिया गया है। यज्ञ करना कोई रूढ़िवादिता नहीं, भविष्य के प्रति संचेतना है।  परम्परात्मक कर्मकाण्डों में यज्ञ के माध्यम से सुखकारी वायुमण्डल का निर्माण होता है। यज्ञ कर्म की यह विधा समस्त पर्यावरण के लिए कल्याणकारी है।
वैज्ञानिक बताते हैं कि यज्ञ में डाली गयी आहूति अग्नि में पड़कर सूक्ष्मतम रूप से पृथ्वी, जल, अन्तरिक्ष, वायु, वनस्पति औषधि सबको ही शुद्ध कर देती हैं। इसी कारण ऋषि वैज्ञानिकों ने यज्ञ जैसे कर्मकाण्ड को मानव जीवन का अंग बना दिया। यज्ञ में जो आहुति डाली जाती है उसमें सुगन्धित और मिष्ठ प्रदार्थ जैसे कस्तूरी, केसर, गुड शक्कर इत्यादि और पुष्टिकारी तथा रोगनाशक पदार्थ जैसे घृत, दुग्ध, फल, अपामार्ग, सोमलता, गूगल, औषधीय वृक्षों के जड़, छाल, फूल आदि का विशेष महत्व है। याज्ञिक कर्म के द्वारा दूषित वायु शुद्ध होती है और आक्सीजन के चक्रमण प्रणाली में संतुलन उत्पन्न होता है।यज्ञ में घृत और अन्य आहुति तत्वों से जब अग्नि का संयोग बनता है तो वायुमण्डल में उपस्थित विभिन्न प्रकार के जीवन रोधी गैसों में सुधार होता है और पूरा वातावरण माधुर्यमय हो जाता है।
ओजोन परत का क्षरण पृथ्वी पर बहुत व्यापक प्रभाव डालता है। सूर्य से आने वाले हानिकारक पराबैंगनी विकिरण से त्वचा कैंसर होने का खतरा रहता है। डीएनए में आंशिक परिवर्तन हो सकते हैं, जो त्वचा कैंसर का कारण बन सकते हैं। पौधों की वृद्धि में रुकावट पत्तियों का खराब होना, त्वचा कैंसर, सन बर्न, मोतियाबिंद  हैं। गैस के रूप में ओजोन खुद विषैली गैस है। इस कारण पृथ्वी की सतह पर यह जैविक जीवन के लिए हानिकारक है। यह पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों के श्वसन के लिए अच्छा नहीं होता। इस प्रकार हम देखते हैं कि समताप मंडल का ओजोन ही अच्छा कहलाता है क्योंकि यह सूर्य के हानिकारक पराबैंगनी किरणों  को अवशोषित कर पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करता है इसलिए पृथ्वी का इसे रक्षा कवच या पृथ्वी का छाता भी कहा जाता है।

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