May 18, 2024

विश्व क्षयरोग दिवस : बीमारी एक ऐसी दशा है जिसका अनुभव शरीर में किया जाता है, पर इसका अस्तित्व होता है मन में – योग गुरु

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केन्द्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि हर वर्ष 24 मार्च को पूरे विश्व में टीबी दिवस मनाया जाता है। इस दिन टीबी यानि तपेदिक रोग के बारे में लोगों को जागरूक किया जाता है। टीबी एक संक्रामक बीमारी है। जो संक्रमित लोगों के खांसने, छींकने या थूकने से फैलती है। यह आमतौर पर फेफड़ों को प्रभावित करती है। लेकिन यह शरीर के किसी भी हिस्से में फैल सकती है। विश्व क्षयरोग दिवस 2022 की थीम ‘टीबी को खत्म करने के लिए निवेश करें, जीवन बचाएं ‘ टी.बी माइक्रोबैक्टीरियम नामक बैक्टीरिया की वजह से होता है । यह बैक्टीरिया फेफड़ों में उत्पन्न होकर उसमें घाव कर देते हैं। यह कीटाणु फेफड़ों, त्वचा, जोड़ों, मेरूदण्ड, कण्ठ, हड्डियों, अंतडियों आदि पर हमला कर सकते हैं।  योग गुरु अग्रवाल ने बताया  बीमारी एक ऐसी दशा है जिसका अनुभव शरीर में किया जाता है, पर इसका अस्तित्व होता है मन में। योग के अनुसार बीमारी हमारी अन्तश्चेतना में दबी रहती है, चूँकि हम उसके प्रति संवेदनशील नहीं होते, अत: उसकी अनुभूति मन और इन्द्रियों के जरिये शरीर में होती है। सभी रोग, चाहे वे पाचन सम्बन्धी हों या रक्त परिसंचरण सम्बन्धी, असावधानी और स्वास्थ्य के नियमों के प्रति लापरवाही से ही पैदा होते है। वर्तमान समय में बीमारियों के निदान में योग की महत्वपूर्ण भूमिका होगी |  हमारे आधुनिक समाज में कई प्रकार के दैनिक और मानसिक रोग व्याप्त हैं। आज जो नई बीमारियाँ पैदा होती जा रही हैं, उनका कारण है- परेशान और चिन्ताग्रस्त मन । कोई दवा इन रोगों का सामना नहीं कर सकती। तुम अगर इसके लिये समाज को कोई नई जीवन पद्धति देना चाहो तो यह कार्य एक वर्ष में होने का नहीं, बीस वर्षों में भी नहीं होगा। तब भी रोगों के वे रंग-ढंग चलते रहेंगे। ये रोग आधुनिक जीवन के महत्त्वपूर्ण अंग बन चुके हैं। इन समस्याओं के समाधान का एक ही रास्ता दिखलाई देता है और वह है योग। शरीर के गंभीर रोगों के लिये सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा है सहानुभूति |  हर एक रोगी चिकित्सा अवधि में पूर्ण विश्राम एवं सेवा चाहता है। रोगी सहानुभूति का भूखा रहता है। वह अपना साधारण कार्य भी स्वयं करना नहीं चाहता है |  रोगी को प्रेम से सेवा एवं सहानुभूति का बर्ताव मिले तो उसे स्वस्थ होने में कम समय लगता है। रोगी को हँसमुख रखना, स्वस्थ होने के लिये आशा और विश्वास बढ़ाना उसके क्रोध को प्रसन्नता से सहन करने एवं प्रेम तथा सहानुभूति से सेवा चालू रखने में ही रोगी की भलाई समझना चाहिये। सदियों पूर्व विकसित योग क्रियाओं से आज का मानव सचमुच लाभ उठा सकता है आज के सभ्य समाज में मनुष्य की कुंठायें और स्नायु रोग बहुत बढ़ गये हैं। सदियों पूर्व हमारे पूर्वजों को योग साधना के लिये अधिक अनुकूल वातावरण उपलब्ध था और विज्ञान सम्बन्धी आवश्यकता उतनी अधिक नहीं थी, जितनी आज के भ्रमित और विक्षिप्त संसार की है।भौतिक स्तर पर हम लोग प्रदूषित और असंतुलित वातावरण के शिकार हैं। हमारे यहाँ प्रकृति के नियमों को आदर नहीं दिया जाता है। हमारा शरीर वायु मण्डल से बहुत प्रकार के विषैले जीवाणुओं को अन्दर ग्रहण करता है। भोजन द्वारा भी यह होता है। इन संचित अशुद्धियों को निष्कासित करने के लिये कोई प्रक्रिया तो अवश्य होनी चाहिये। योग ही एकमात्र विज्ञान है जिसने यह साधन प्रस्तुत किया है। हठयोग में ऐसे अभ्यास हैं जिनके द्वारा पूरे उदर और आहार नली की भीतरी सफाई हो जाती है। प्राणायाम श्वसन संस्थान और नाड़ी मण्डल को शुद्ध व सन्तुलित करता है; आसन, मुद्रा, और बंध शरीर के ऊर्जा अवरोधों को मुक्त करते हैं और शरीर में जीवनी शक्ति तथा प्रतिरोध शक्ति बढ़ाने में सहायता देते हैं। मनुष्य को अपने जीवन में मानसिक स्तर पर परेशानी, भय, चिन्ता और तनावों का अनुभव होता है। ये अनुभव अवचेतन मन में अशुद्धियों का संग्रह बना देते हैं। इन सब विषाणुओं को बाहर निकालने और तनावमुक्त रहने के लिये व्यक्ति को नियमित रूप से ध्यान और यौगिक शिथिलीकरण का अभ्यास करना ही पड़ेगा। यद्यपि यौगिक क्रियाओं का विकास सदियों पूर्व हुआ था, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वे आज के आदमी के लिये अनुपयुक्त हैं। सही बात तो यह है कि हम लोग आज अत्यन्त दबाव व तनाव में जी रहे हैं और हम पिछली सदी वालों की तुलना में योग द्वारा बहुत जल्दी लाभ प्राप्त कर सकते हैं। दीर्घकालीन व मूलभूत रोगों को हठयोग द्वारा सफलतापूर्वक ठीक किया जा सकता है। जो बीमारियाँ शुद्ध रूप से शारीरिक किस्म की हैं, उन्हें आसन, प्राणायाम और षट्कर्म द्वारा सीधे दुरुस्त किया जा सकता है। यदि रोग का कारण शरीर में न होकर मन की गहराई में हो तब तो हठयोग के साथ-साथ राज योग का अभ्यास करना होगा। कैंसर जैसे रोग मन में पैदा होते हैं और एक लम्बी तैयारी के बाद  शरीर पर प्रकट होते हैं।

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