May 19, 2024

विश्व वन्यजीव दिवस- सृष्टि के संतुलन के लिए प्रकृति के साथ वन्य जीवों का संरक्षण अति आवश्यक है : योग गुरु महेश अग्रवाल

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि विश्व के वन्य जीवों और वनस्पतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व वन्यजीव दिवस  3 मार्च को मनाया जाता है। यह दिन हमें वन्य जीवों और वनस्पतियों के विभिन्न सुंदर और विविध रूपों का जश्न मनाने और उनके संरक्षण से लोगों को मिलने वाले कई लाभों के बारे में जागरूकता फैलाने का अवसर प्रदान करता है। यह हमें वन्यजीव अपराध और मानव-प्रेरित प्रजातियों की कमी के खिलाफ लड़ाई को तेज करने की तत्काल आवश्यकता के बारे में भी याद दिलाता है, जिसका आगे आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव पड़ता है। विश्व वन्यजीव दिवस 2022 का विषय “पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के लिए प्रमुख प्रजातियों को पुनर्प्राप्त करना” है। यह जंगली जीवों और वनस्पतियों की सबसे गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों में से कुछ के संरक्षण पर केंद्रित है। साथ ही, उनके संरक्षण के लिए समाधानों की कल्पना करने और उन्हें लागू करने की दिशा में चर्चा करना महत्वपूर्ण है।

योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया  कि प्रकृति का अध्ययन करें, प्रकृति से प्यार करें, प्रकृति के करीब रहें। यह आपको कभी असफल नहीं करेगा। हठयोग के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के योगासनों का वर्णन आता है। हमारे आचार्यों ने विभिन्न प्रकार के आसनों के नाम भिन्न-भिन्न प्रकार से रखे। उन्होंने इन्हें बड़े अर्थपूर्ण नाम दिए। कुछ आसनों के नाम पक्षियों से संबंधित हैं जैसे बकासन (बगुला), मयूरासन (मोर), कुक्कुटासन (मुर्गा), हंसासन (हंस)। कुछ के नाम कीड़ों से जोड़े गए हैं। वृश्चिकासन (बिच्छू), शलभासन (टिड्डा)। कुछ के नाम जानवरों पर आधारित हैं श्वानासन (कुत्ता), उष्ट्रासन (ऊँट), सिंहासन (सिंह), गोमुखासन (गाय), वातायन (घोड़ा), आदि कुछ के नाम पेड़-फूल आदि पर रखे जैसे वृक्षासन (पेड़), ताड़ासन (ताड़), पद्मासन (कमल) आदि। कुछ जलचर और उभयचर प्राणियों के नाम पर भी हैं जैसे मत्स्यासन (मछली), कूर्मासन (कछुआ), भेकासन (मेढ़क), मकरासन (मगर) ज़मीन में रेंगने वाले प्राणी सर्प को सर्पासन व भुजंगासन नाम दिया। हनुमानासन, वीरासन, महावीरासन, बुद्धासन जैसे आसनों के नाम भगवान की छवि से लिए और महान ऋषियों जैसे कपिल (कपिलासन), वशिष्ठ (वशिष्ठासन), विश्वामित्र, भागीरथ आदि नाम उनकी याद के लिए हमारे संस्कार में डाले। आखिर क्या कारण रहा कि हमारे महाज्ञानी ऋषि-मुनियों ने ये नाम उनसे जोड़े। यहाँ यह तर्क बड़े सरल ढंग से किया जा सकता है कि जब हम उस आसन की अंतिम स्थिति में पहुँचते हैं तो वह आसन उसके स्वरूप में वैसा ही दिखता है जैसा आसन का नाम है। जैसे कुर्मासन , जब हम यह आसन लगाते हैं तो यह आसन कछुआ के समान ही दिखाई पड़ता है और साधक को उसके प्रति लगाव भी उत्पन्न करना रहा है। इसके पीछे और भी तर्क दिए जा सकते हैं।  जब हम भिन्न-भिन्न प्राणियों के समान उनकी आकृति ग्रहण करते हैं तो साधक के मन में उनके प्रति सम्मान व प्रेम उत्पन्न होना चाहिए एवं प्राणियों से घृणा नहीं होनी चाहिए। कारण वह जानता है कि सारी सृष्टि में छोटे जीव से लेकर बड़े-बड़े महात्माओं तक वही विश्वात्मा श्वास लेता है, जो असंख्य रूपों को ग्रहण करता है। वह निराकार रूप ही उसका सबसे महान रूप है। वैसे यहाँ तर्क यह भी है कि ईश्वर ने प्रत्येक प्राणी को एक न एक गुण विशेष रूप से प्रदान किया है, यहाँ तक कि पेड़-पौधे तक में कोई न कोई गुण विशेष रहता है। चूँकि मनुष्य अपने अंदर अधिक से अधिक गुण समाहित करना चाहता है, अतः उसका उद्देश्य आसन से वह प्राप्त करना है एवं उस आसन से जो उसके लाभ हैं वह भी प्राप्त करना चाहता है। एक कारण और तार्किक है कि हमें वे आचार्य प्रकृति से निकटस्थ करना चाहते हैं ताकि प्रकृति के गुणों को भी आत्मसात् कर सकें।

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