May 11, 2024

भाषा संस्‍कृति की सशक्‍त वाहक है : डॉ. चंद्रकांत रागीट

वर्धा. मराठी और  उड़ीया   भाषा  में अंतर संबंध प्रगाढ़ है।  दोनों भाषाएं संस्‍कृति की सशक्त वाहक है।  यह विचार महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के प्रतिकुलपति डॉ. चंद्रकांत रागीट ने व्‍यक्‍त किए। वे विश्‍वविद्यालय में एक भारत श्रेष्ठ भारत के अंतर्गत ‘मराठी-उड़ीया अंतरभाषीय संबंध’ विषय पर  हिंदी विश्‍वविद्यालय एवं उड़ीसा केंद्रीय विश्‍वविद्यालय के संयुक्‍त तत्‍वावधान में आयोजित ऑनलाइन विशिष्‍ट व्‍याख्‍यान की अध्‍यक्षता करते हुए संबोधित कर रहे थे।

31 जनवरी को आयोजित विशिष्‍ट व्‍याख्‍यान कार्यक्रम में जुड़े अतिथियों का स्‍वागत हिंदी विश्‍वविद्यालय के एक भारत श्रेष्‍ठ भारत के सह-नोडल अधिकारी डॉ. सूर्य प्रकाश पांडेय ने किया। इसके पश्‍चात् उड़ीसा केंद्रीय विश्‍वविद्यालय के एक भारत श्रेष्‍ठ भारत के नोडल अधिकारी डॉ. सौरभ गुप्‍ता ने प्रास्‍ताविकी रखते हुए कहा कि स्‍वाधीनता आंदोलन में दोनों राज्‍यों के समाचार पत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसके तुलनात्‍मक अध्‍ययन की आवश्‍यकता है।  उन्‍होंने संचार माध्‍यमों में दोनों राज्‍यों की भाषा, रथयात्रा और महाराष्‍ट्र  की वारी आदि साझा संस्‍कृति पर अपनी बात रखी।

वक्‍ता के रूप में  हिंदी विश्‍वविद्यालय के शिक्षा विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. भरत पंडा उपस्थित थे। डॉ. रागीट ने कहा कि महाराष्‍ट्र और उड़ीसा की आध्यात्मिक संस्‍कृति में काफी समानताएं हैं। महाराष्‍ट्र में विठ्ठल रूक्मिनी और उड़ीसा में भगवान जगन्‍नाथ श्रमिकों और सामान्‍यजनों के प्रतिनिधि करने वाले भगवान है। उन्होंने कहा कि दोनों राज्‍यों की आध्‍यात्मिक विरासत को बढा़वा देने के लिए अनुसंधान की आवश्‍यकता है ताकि संतो द्वारा प्रदत्‍त ज्ञान सामान्‍य जन तक पहुचाया जा सके। उन्‍होंने संत ज्ञानेश्‍वर द्वारा रचित ज्ञानेश्‍वरी का उदाहरण देते हुए कहा कि ज्ञानेश्‍वरी ने संस्‍कृ‍त भाषा को सरल तरीके से सामान्‍य जन तक पहुँचाया।

डॉ. रागीट ने दोनों राज्‍यों की भाषा, संस्‍कृति और संत परंपरा के साथ-साथ वारकरी संप्रदाय, नई शिक्षा नीति में भाषा का महत्‍व आदि पर विस्‍तार से प्रकाश डाला। वक्‍ता के रूप में संबोधित करते हुए डॉ. भरत पंडा ने कहा कि एकता ही हमारी श्रेष्‍ठता है। हमारी विविधता शरीर के विभिन्‍न अंग के समान है। उन्‍होंने कहा कि संस्‍कृति को जीवित रखने की शक्ति भाषा और साहित्‍य में है।  महाराष्‍ट्र तथा उड़ीसा की भाषा साहित्‍य परंपरा में काफी समानताएं विद्यमान है। उन्‍होंने दोनों राज्‍यों की स्‍थापना से लेकर राज्‍यों की संस्‍कृति और भाषा के बीच के अंतर संबंध को रेखांकित करते हुए इन समृद्ध परंपराओं पर विस्तार से अपने विचार रखे।

कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन हिंदी विश्‍वविद्यालय के एक भारत श्रेष्‍ठ भारत के सह-नोडल अधिकारी डॉ. सूर्य प्रकाश पांडेय ने किया तथा आभार कोलकाता केंद्र के प्रभारी डॉ. ज्योतिष पायेंग ने किया। इस कार्यक्रम में दोनों विश्‍वविद्यालय के अध्‍यापकों तथा विद्यार्थियों ने ऑनलाइन पद्धति से सहभागिता की।

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