यज्ञ, दान, तप, व्रत, वर्ण एवं आश्रम धर्म , धर्म के ही नाम : पुरी शंकराचार्य
बिलासपुर. ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्द्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज छत्तीसगढ़ प्रवास के अंतर्गत बिलासपुर की यात्रा में अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ० एडीएन बाजपेई के निवास पर आयोजित पादूका पूजन के अवसर पर उपस्थित प्रबुद्धजनों को संबोधित करते हुये कहा कि वर्तमान एटम और मोबाइल के युग में भी कोई भी धर्म की परिभाषा का खंडन नहीं कर सकता। साध्य एवं भव्य कोटि के धर्म का नाम यज्ञ , दान , तप , व्रत , वर्ण धर्म एवं आश्रम धर्म है। यज्ञ एवं दान के लिये धन खर्च करना पड़ता है, तप के लिये सुख का त्याग तथा व्रत के लिये अन्न , जल का त्याग आवश्यक होता है l
वर्ण धर्म एवं आश्रम धर्म के प्रति भ्रांतियां अज्ञान मूलक है। अर्थ और काम की दृष्टि से वर्ण धर्म, आश्रम धर्म की उपयोगिता पर विचार करने की आवश्यकता है। जन्म से सबकी जीविका सुरक्षित रहे यह वर्ण धर्म की विशेषता है। आश्रम धर्म की विशेषता है कि ब्राह्मण सभी चारों आश्रमों में , क्षत्रिय सन्यास के अतिरिक्त बाकी तीन आश्रमों में , वैश्य सन्यास तथा वानप्रस्थ को छोड़कर शेष दो आश्रमों के लिये अधिकृत हैं। ठीक इसी प्रकार सेवक वर्ग सिर्फ गृहस्थ आश्रम में अधिकृत हैं , इसका पालन करने पर समाज में आवश्यकतानुसार सभी वर्णों की जनसंख्या सुव्यवस्थित हो सकती है। उपरोक्त अवसर पर बैजनाथ चंद्राकर रश्मि सिंह,प्रमोद नायक विभिन्न विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर आलोक चक्रवाल डॉक्टर एल पी पटेरिया डॉक्टर वंस गोपाल सिंह सी व्ही रमन दुबे जी एवं अधिकारीगण उपस्थित थे।