May 20, 2024

गायत्री मंत्र आदर्श है, नाड़ी शोधन प्राणायाम के दौरान श्वसन क्रिया के अनुपात को मापने की सर्वोत्तम विधि : योग गुरु

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक  केंद्र  स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल कई वर्षो से निःशुल्क योग प्रशिक्षण के द्वारा लोगों को स्वस्थ जीवन जीने की कला सीखा रहें हैं । वर्तमान में भी ऑनलाइन एवं प्रत्यक्ष माध्यम से यह क्रम अनवरत चल रहा है। योग प्रशिक्षण के दौरान केंद्र पर योग साधकों को नाड़ी शोधन प्राणायाम के अभ्यास करवाये जाते है साथ ही निर्देश दिया जाता है सही अनुपात के बारे में यदि हम कोई भी कार्य या इलाज दवाई बिना अनुपात या बिना कोई समय सारणी बनाये करते है तो उसका लाभ सही समय पर प्राप्त नहीं होता है उसी प्रकार प्राणायाम का अभ्यास भी यदि सही अनुपात एवं सही समय सारणी बना कर किया जाये तो शीध्र शारीरिक मानसिक आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होने लगता है।
योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि कई योग संहिताओं में ताली बजाकर या चुटकी बजाकर काल गणना की विधि बताई गई है, किन्तु कई बार यह विधि कोलाहलपूर्ण और बोझिल प्रतीत होती है। उस विधि से की गई गणना त्रुटिपूर्ण भी होती है। इस दृष्टि से मंत्र-विधि सबसे अधिक उपयुक्त है। इस कार्य में साधक का निजी मंत्र उतना कारगर नहीं होगा। श्वसन-काल के माप के लिए गायत्री मंत्र उपयुक्त है।
गायत्री मंत्र चौबीस अक्षरों का है और उसकी एक मानसिक आवृत्ति से श्वसन का एक चक्र पूर्ण होता है। हर व्यक्ति की प्राणिक क्षमता भिन्न होती है। कुछ लोग अधिक वायु ग्रहण करते हैं और कुछ लोग कम। इसमें एक संतुलन आवश्यक है ताकि आत्मिक अभिव्यक्ति संभव हो सके। गायत्री मंत्र से इस उद्देश्य की पूर्ति होती है। गायत्री मंत्र के चौबीस अक्षर इस प्रकार हैं- ‘ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर् वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि, धियो यो नः प्रचोदयात।’ गायत्री मंत्र आदर्श प्राणिक क्षमता की लम्बाई का होने के कारण साँस खींचने में एक मानसिक जप के बराबर हो जाता है। भीतर साँस रोकने (कुम्भक) के समय एक या दो आवृत्ति की जा सकती है, साँस छोड़ने में दो आवृत्तियाँ और बाहर साँस रोकने (बहिर्कुम्भक) में गायत्री की एक मानसिक आवृत्ति की जा सकती है।
गायत्री मंत्र आदर्श है, परंतु अनिवार्य नहीं। साधक किसी दूसरे मंत्र का जप भी कर सकता है। हाँ, यह कहना कठिन है कि मंत्र की कितनी आवृत्तियाँ साधक की प्राणिक क्षमता के समतुल्य हैं। प्रत्येक साधक को स्वयं इसका निर्धारण करना चाहिए। यह आवृत्ति 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8 कुछ भी हो सकती है। इसलिए  प्रत्येक साधक को गायत्री मंत्र सीख लेना चाहिए।
गायत्री किसी साधक का निजी मंत्र नहीं होता। गायत्री मंत्र प्राणायाम के लिए है। इसका संबंध श्वास से है। कहा गया है कि गायत्री प्राणिक शक्ति है, जीवनी शक्ति है। इसलिए एकाग्रता और ध्यान के लिए यदि प्राणिक शक्ति का उपयोग करना हो तो प्राणायाम के साथ गायत्री मंत्र का प्रयोग करना चाहिए।
गायत्री वह नाद है जो साधक के मन को इन्द्रियों के मोहजाल से मुक्त करता है। ध्यान में मन इसलिए नहीं रमता कि वह इन्द्रियों के मोह-पाश से मुक्त नहीं हुआ है। ध्यान-साधना में सबसे बड़ी बाधा इन्द्रियाँ हैं। डाकिये की तरह ये इन्द्रियाँ कोई-न-कोई संदेश लेकर आ सकती हैं और मन में कोलाहल मचा देती हैं। इसलिए इन्द्रियों के चंगुल से मन को मुक्त करना है और इस कार्य में गायत्री मंत्र से बड़ा कोई दूसरा मददगार नहीं होगा।
नाड़ी -शोधन प्राणायाम या अनुलोम – विलोम यहाँ पूरक- श्वास अन्दर लेना, रेचक -श्वास बाहर करना। अंतःकुंभक –  श्वास अन्दर रोकना, बाहृय कुंभक – श्वास बाहर रोकना। लाभ – नाड़ी शोधन के अभ्यास अन्य प्राणायामों के आधार-स्थल हैं अतः साधक जितना अच्छा नाड़ी शोधन करेगा, बाक़ी के प्राणायामों का भी उतना ही लाभ मिलेगा। मस्तिष्क को चुस्त, क्रियात्मक और संवेदनशील बनाता है। शारीरिक और मानसिक संतुलन स्थापित होता है, जिस कारण शारीरिक और मानसिक रोग नहीं होते। धारणा, ध्यान और समाधि का स्तर बढ़ता है। समस्त नाड़ियों में प्रवर्त्तमान मल का शुद्धिकरण होकर वर्तमान और भविष्य के परिणाम अच्छे होते हैं। मन शांत, प्रसन्नचित्त रहता है।
कई गुण स्वतः बढ़ते हैं और मिथ्यात्व का धीरे-धीरे नाश होता है। अस्थमा, टॉन्सिल, कफ़ सम्बंधी रोग, हड्डी, चर्म एवं ब्लड प्रेशर के नियंत्रण में अति लाभदायक, माईग्रेन एवं साइनस में विशेष लाभप्रद ।
सावधानियाँ : श्वास क्रिया ध्वनि रहित होनी चाहिए। दोनों नासिका छिद्रों से बराबर लय बनाते हुए श्वास लें। सीना कम-ज़्यादा न फैलाएँ। तनाव होने पर कुछ क्षण रुके विश्राम करें एवं थकान दूर होने पर पुनः प्राणायाम करें

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