गंगा दशहरा: जानिए गंगा के धरती पर आने की कहानी


नई दिल्‍ली. आज गंगा दशहरा है ,आज गंगा जी धरती पर आई थी, हम आपको गंगा जी के धरती पर आने की कहानी बताते हैं. आपने एक फोटो देखी होगी जिसमें शंकर भगवान के बालों की जटा (जूड़ा) है ,और वहां से पानी की धार निकल रही है. इस फोटो के पीछे एक कहानी है. प्राचीन समय में राजा भगीरथ अपने पितृगणों को जीवन-मरण के चक्र से मुक्त करके मोक्ष दिलाना चाहते थे.  गंगा स्वर्ग की नदी है, विष्णुधाम से उसका उद्गम हुआ है. वो इतनी पवित्र है कि उसके पानी से जीवन चक्र में बार बार धरती पर आने का क्रम रुक सकता है. भगीरथ चाहते थे कि उनके पूर्वजों को मोक्ष मिल जाए.

इसी काम के लिए उनसे पहले के उनके कुल के राजा असफल हो गये थे.  लेकिन भगीरथ ने कठोर तपस्या की और भगवान विष्णु और मां गंगा को प्रसन्न किया . गंगा धरती पर आने को तैयार हो गईं. लेकिन गंगा नदी के पानी इतना वेग था कि धरती पर आते ही उनका प्रवाह बह जाता ,पाताल में चला जाता और धरती पर दिखाई नहीं देती.

ऐसे में भगवान शंकर ने उनके पूरी पानी को अपनी जटाओं में स्थान दिया और वहां से जलधारा के रूप में हिमाचल के गंगोत्री क्षेत्र में उतारा. जिस दिन ये कार्य हुआ वो दिन ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तिथि थी . इसलिए कैलेंडर में गंगा दशहरे की तिथि 1 जून 2020 को पड़ी.

पंडित अमर डब्बावाला त्रिवेदी के अनुसार गरुड़ पुराण से लेकर पद्म पुराण तक यह उल्लेख है कि गंगा नदी में स्नान करने से लाभ होता है, यहां अस्थियां प्रवाहित होने से मोक्ष मिलता है. स्कंद पुराण में कहा गया है कि गंगा पापमोचिनी हैं यानी पापों को दूर करती है. गंगा नदी का पानी वर्षों तक खराब नहीं होता. वैज्ञानिक भी कहते हैं कि इसमें मौजूद बैक्टीरियो फेज और अन्य तत्व इसकी गुणवत्ता बढ़ाते हैं. किसी भी पूजा करने से पहले पवित्र होने की वजह से गंगा जल छिड़कने का विधान है.

आज गंगा स्नान का महत्व है. अगर किसी कारणवश गंगा स्नान को नहीं जा पाए तो गंगाजल बाल्टी में डाल कर नहाना चाहिए. आज के दिन भगवान शिव की पूजा करें, गंगा स्त्रोत का पाठ करें, पितरों का काले तिल से तर्पण करें. साधारण भाषा में कहें तो जो भटकती आत्माएं हैं उनको अगर भटकने से रोकना है तो आज पितृ श्राद्ध या पितृ तर्पण करने से आत्मा का भटकना बंद हो सकता है. पितरों का हमारे ऊपर प्रसन्न होना क्यों जरूरी है इस पर कभी बाद में बात करेंगे.

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