May 13, 2024

विश्व स्वास्थ्य दिवस – व्यक्ति के मनोविकार, निराशाएँ और भावनाएँ ही उसकी बीमारी के कारण हैं : योग गुरु महेश अग्रवाल

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि  स्वास्थ्य एक ऐसा विषय है जो हमारे जीवन में बेहद अहमियत रखता है, फिर भी ज्यादातर लोग इसकी अनदेखी ही करते हैं. मेंटल स्ट्रेस, डिप्रेशन, इंजायटी से लेकर हिस्टिरिया, डिमेंशिया, फोबिया जैसी कई मानसिक बीमारियां है जो पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ रही है. कोरोना के इस दौर में तो सोशल डिस्टेंसिंग, आइसोलेशन के कारण ये समस्याएं और भी बढ़ गई हैं.  पूरी दुनिया में 7 अप्रैल को विश्व  स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है.  स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता बढ़ाने को लेकर दुनिया भर में तरह-तरह के कार्यक्रम किए जाते हैं.इस साल विश्व स्वास्थ्य दिवस 2022 की थीम ‘हमारा ग्रह, हमारा स्वास्थ्य है। इस साल की थीम का उद्देश्य हमारे ग्रह पर रहने वाले हर मनुष्य के स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करना है।
योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि  मन की शान्ति क्या है?
जीवन की सन्तुलित अन्तर्दृष्टि को मन की शान्ति कहते हैं। पाने और खोने से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है, वह तो जीवन में हर चीज की समझदारी से सम्बन्धित है। बाहरी जीवन उतार-चढ़ाव से परिपूर्ण होता है और यह एक कमजोर आदमी के लिये थकावट का कारण है, लेकिन शक्तिशाली व्यक्ति के लिये जीवन का हर चढ़ाव एक खुशी है और हर उतार एक खेल है। स्वतंत्र मन की प्राप्ति कैसे होगी?
स्वतंत्र मन की प्राप्ति बहुत कठिन है और उससे भी बड़ी बात यह है कि वह बहुत खतरनाक चीज है। चीता अगर पिंजड़े में बंद नहीं होगा तो कहीं भी उधम करेगा और बहुत लोगों को मार सकता है। मन को स्वतंत्र करने से पहले उसे शिक्षित, प्रशिक्षित और अनुशासित बनाना आवश्यक है, नहीं तो तुम्हारे लिये और दूसरों के लिये भी वह विनाश का कारण बनेगा और उसकी नकारात्मक शक्तियाँ हावी हो जायेंगी। मन बहुत शक्तिशाली है। भला और बुरा दोनों का मूल कारण मन है। संकट और असन्तुलन, वह कुछ भी पैदा कर सकता है। वही मन एक समय आत्महत्या करने को तैयार हो जाता है और दूसरे ही क्षण ईश्वर दर्शन करना चाहता है। इसका मतलब हुआ कि मन के दो स्तर हैं- अप्रशिक्षित मन और प्रशिक्षित मन। योगी का मन प्रशिक्षित होता है तथा पशु मन अप्रशिक्षित होता है। मनुष्य में पशु, इंसान और भगवान तीनों हैं। विचारों और भावनाओं को प्रशिक्षित करने से मनुष्य के कार्य नियंत्रित होते हैं और तब वह अपने मन को स्वतंत्र छोड़ने के बारे में सोच सकता है। मन को खुला छोड़ने से पहले अपने आपको अनुशासित और संयमित बना लो, नहीं तो वह तुम्हें दुःखी और निराश करेगा। घृणा, इच्छा, अप्रसन्नता, आसक्ति और नफरत पैदा करेगा। वह आवारा मन तुम्हें आत्म विनाश की ओर प्रेरित करेगा। आज हम सब दुःखी हैं, क्योंकि हमारा मन असंयमित है, अनुशासित नहीं है। इसलिये जब हम मन की स्वतंत्रता की बात करते हैं तब हमें संयम के बारे में नहीं भूलना चाहिये। मन का संयम और मन की स्वतंत्रता दोनों साथ-साथ चलें। वे दोनों चीजें एक-दूसरे से अलग और स्वतंत्र नहीं है, बल्कि परस्पर निर्भर हैं।
योग गुरु अग्रवाल ने मन के तनावों को दूर करने के लिये आध्यात्मिक तरीको के बारे में बताया यदि तनाव बहुत अधिक हो तो कुछ काल के लिये घर छोड़ देना चाहिये और शान्त वातावरण में रहना चाहिये। किसी आश्रम में जाकर आश्रम-जीवन बिताना चाहिये। यह पहला कदम है और दूसरा है सत्संग। जब तुम्हारी कार में कोई गड़बड़ी हो जाती है तो तुम उसे गैरेज में ले जाकर किसी अच्छे मिस्त्री के पास कुछ दिनों के लिये छोड़ देते हो। वहाँ वह मिस्त्री कार की गड़बड़ी मालूम करके उसकी सफाई और सर्विसिंग करता है। ठीक उसी प्रकार, जब भारी तनाव का समय हो तब अपनी कार किसी अच्छे मिस्त्री के हाथों में दो। सत्संग सबसे अच्छा उपाय है। तनाव साधारण अवस्था में हो, तब कुछ आसन-प्राणायाम के साथ योगनिद्रा का अभ्यास शुरू करना चाहिये। तनाव तीन प्रकार के होते हैं- स्नायविक, मानसिक और भावनात्मक। स्नायविक तनाव ज्यादा दौड़-धूप करने से हुआ हो, तब तुम्हें कुछ और विश्राम की जरूरत है। अगर व्यायाम के अभाव में तनाव हुआ हो, तो जीवन को और अधिक सक्रिय बनाओ। अति चिन्तन और स्वप्न देखने के कारण तनाव मानसिक हो, तो तुम्हें कठिन परिश्रम करना चाहिये, कर्मयोग करना चाहिये। इससे मन की शक्ति को स्वस्थ दिशा-प्रवाह मिलेगा। मानसिक तनाव तो तब आते हैं जब तुम्हारे पास सोचने का समय अधिक होता है। प्रेम, घृणा, मृत्यु आदि से उत्पन्न भावनात्मक तनाव दूर करने में ज्यादा कठिनाई होती है, लेकिन भक्तियोग के ठीक और व्यवस्थित अभ्यास से इसे दूर किया जाता है। इन तनावों को मुक्त करने के लिये अध्यात्म पथ पकड़ना चाहिये।
साधारण तौर पर अशान्ति का कारण है अतिशय सोचना और इच्छा करना और यह इस बात का सूचक है कि तुम्हारा दिमाग काबू के बाहर हो गया है। इस स्थूल शरीर में दो प्रकार की शक्तियाँ हैं। एक को कहते हैं मानसिक शक्ति और दूसरी को प्राणिक शक्ति। जब तुम बेचैनी का अनुभव करते हो तब समझना कि तुम्हारी मानसिक शक्ति ऊँची है और प्राणशक्ति नीची और दोनों में असन्तुलन आ गया है। ज्ञानेन्द्रियाँ बहुत सक्रिय हैं और कर्मेन्द्रियाँ अल्प सक्रिय। हठयोग में हम लोग इसे इड़ा और पिंगला के बीच असन्तुलन  कहते हैं। आधुनिक विज्ञान की भाषा में इसे कहते हैं अनुकंपी और परानुकंपी तंत्रिका तंत्र में असन्तुलन। मानसिक शक्ति की इस अधिकता को सन्तुलित करने के लिये राजयोग के ध्यान का अभ्यास अधिक करना चाहिये। सबसे अच्छा उपाय है – मंत्र का जप करना। मंत्र का जप मानसिक रूप से, माला के साथ या बिना माला के किया जा सकता है। श्वास के साथ मिलाकर भी जप किया जाता है। मंत्र के अभ्यास के लिये और भी बहुत से तरीके हैं, लेकिन ऊपर लिखे ये तरीके सर्वश्रेष्ठ सिद्ध होंगे तथा उनके अभ्यास से मानसिक शक्ति का बहिर्गमन बंद होगा। अगर तुम यह नहीं कर सकते तो इस समस्या के निदान के लिये एक दूसरा उपाय भी है। शरीर में ऊर्जा के स्तर को ऊपर उठाओ। तुम या तो मानसिक शक्ति की मात्रा की जाँच करो अथवा प्राणशक्ति की मात्रा को बढ़ाओ। हठयोग, राजयोग, क्रियायोग, कर्मयोग या वास्तव में योग के प्रत्येक अंग के अभ्यास का उद्देश्य इसी सन्तुलित स्थिति को लाना है।
इसके साथ ही शरीर के एक स्तर पर कुछ विशेष हार्मोन स्रावित होते हैं जो अशान्ति पैदा करते हैं। इनमें एड्रिनलिन, टेस्टोस्टेरॉन नामक हार्मोन सबसे अधिक विघ्नकारक हैं। यदि इनके प्रवाहों को ठीक से नियंत्रित कर लिया जाये तो अशान्ति उत्पन्न करने वाले आरंभिक शारीरिक उपद्रवों को दूर किया जा सकता है।आसन, प्राणायाम और ध्यान के प्रतिदिन नियमित अभ्यास से हार्मोन के स्रावों में नियंत्रण आयेगा, मानसिक और प्राणिक शक्तियों में एक स्वाभाविक संतुलन होगा और उद्विग्नता जैसी समस्याएँ उत्पन्न नहीं होंगी।
हमारे जीवनशैली में बदलाव, अपने आप में उलझे रहना और समाजिक जीवन से दूरी चिंता और तनाव का कारण बनते जा रहे हैं. आगे जाकर यही डिप्रेशन के साथ ही इस तरह की अन्य मानसिक बीमारियों की वजह बन जाती है.  इस दिवस को मनाने का मकसद है कि लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हों और समय रहते डॉक्टरी सहायता ले सकें. साथ ही स्वास्थ्य की परेशानियों से जूझ रहे लोगों की कठिनाई को उनके दोस्त, रिश्तेदार व समाज भी समझ सकें.

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